उत्तराखंड के टीकाराम..दुबई में लाखों की नौकरी छोड़कर घर लौटे, शुरू किया गढ़ बाज़ार..हो रहा है मुनाफा
टीकाराम सिंह पर्वतीय अंचल में उगने वाले उत्पादों को संरक्षित करने के प्रयास में जुटे हैं...
Dec 17 2019 11:53PM, Writer:कोमल नेगी
पहाड़ पलायन की मार झेल रहा है। गांव खाली हो गए हैं और खेत बंजर। खेती दम तोड़ने लगी है, ऐसे वक्त में भी कुछ लोग हैं जो कि पहाड़ की बेहतरी के लिए, यहां की समृद्ध संस्कृति बचाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में से एक हैं टीकाराम सिंह। जो कि देहरादून में रहते हैं। टीकाराम सिंह पर्वतीय अंचल में उगने वाले उत्पादों को संरक्षित करने के प्रयास में जुटे हैं। टीकाराम की इस कोशिश से पहाड़ी उत्पाद शहरों में, देश-विदेश में पहचान बना रहे हैं। डिमांड होगी तो उत्पादन भी होगा। पहाड़ी उत्पादों की डिमांड बढ़ रही है, इसीलिए किसान भी खेती के लिए आगे आ रहे हैं। टीकाराम गढ़ बाजार के माध्यम से पहाड़ी अंचलों में उगने वाले अनाज की बिक्री का काम करते हैं। इससे शहरों में रहने वाले लोगों को पहाड़ी उत्पाद मिल जाते हैं, साथ ही किसानों को भी फायदा होता है। गढ़ बाजार की शुरुआत के पीछे भी एक अलग कहानी है। टीकाराम सिंह कुछ साल पहले नौकरी के लिए दुबई चले गए थे। वहां वो बतौर शेफ काम करने लगे। पगार लाखों में थी। आगे पढ़िए
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विदेश में काम करते वक्त टीकाराम ने देखा कि वहां पहाड़ी उत्पादों की खूब डिमांड है। वो सोचने लगे कि काश वो भी पहाड़ी उत्पादों के संरक्षण के लिए कुछ कर पाते। इसी सोच ने उन्हें दिशा दिखाई और साल 2018 में वो दुबई की नौकरी छोड़ देहरादून लौट आए। देहरादून आकर गढ़ बाजार की स्थापना की। इसके जरिए पहाड़ी उत्पादों को संरक्षित करने का प्रयास करने लगे। टीकाराम सिंह अब भी पहाड़ी क्षेत्रों में पैदा होने वाले उत्पादों को बचाने में जुटे हैं। टीकाराम बताते हैं कि पहाड़ में मिलने वाले खाद्य उत्पाद हर बीमारी से लड़ने में सक्षम हैं, ये बात विदेशी भी अच्छी तरह जानते हैं। अब इन उत्पादों को पहचान और बाजार दिलाना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। टीकाराम पहाड़ी उत्पादों को प्रमोट कर पलायन रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। वो किसानों से खेती करने को कहते हैं, जो अनाज पैदा होता है, उसे किसानों से सीधे खरीदते हैं। टीकाराम पहाड़ी चावल, दाल, उड़द, राजमा, काली भट्ट, मंडुवा और झंगोरा जैसे अनाजों को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। वो कहते हैं कि अगर हमारे अनाज, हमारी खेती बचेगी तभी पहाड़ का अस्तित्व भी बचेगा। उनका मकसद खेती को बढ़ावा देकर पलायन रोकना है, और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिल रही है।