उत्तराखंड: स्वतंत्रता सैनानियों के गांव में सड़क नहीं, गर्भवती को उठाकर 5 Km पैदल चले लोग
दुख है...ये वो गांव है जिसके लोगों ने देश की आजादी के लिए सालों लड़ाई लड़ी, आज ये गांव अपने हालातों से लड़ रहा है। गांव में सुविधाएं तो दूर एक सड़क तक नहीं है...
Mar 4 2020 1:01AM, Writer:कोमल नेगी
देश को आजाद हुए सात दशक बीत गए, लेकिन पहाड़ के कई गांव अब भी विकास से महरूम हैं। इन गांव के लोगों को विकास की बातें बेमानी सी लगती हैं। गांववाले कहते हैं कि सरकार बार-बार बदलती है, पर हमारे गांवों के हालात नहीं बदल रहे। पहाड़ के कई गांव आज भी सड़क के लिए तरस रहे हैं। इन्हीं में से एक गांव है पिथौरागढ़ का गांधीनगर, जो कि मुनस्यारी क्षेत्र में स्थित है। इस गांव को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गांव के तौर पर जाना जाता है। लेकिन देश को आजादी दिलाने वाले इन सेनानियों को हमारा आजाद देश एक सड़क तक नहीं दे पाया। रविवार को यहां प्रसव पीड़ा से जूझ रही एक महिला को डोली में बैठाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा, क्योंकि गांव में सड़क नहीं है। ग्रामीण प्रसूता को डोली में बैठाकर 5 किलोमीटर पैदल चले, तब कहीं जाकर महिला को अस्पताल पहुंचाया जा सका।
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सड़क तक पहुंचने के बाद महिला को मुनस्यारी के अस्पताल में एडमिट कराया गया। चलिए आपको गांधीनगर गांव का इतिहास बताते हैं। यहां रहने वाले सेनानी नरीराम, भीम सिंह कुंवर और दिलीप सिंह भंडारी ने देश की आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी, लेकिन आजादी के 7 दशक बाद भी उनके गांव तक सड़क नहीं पहुंच पाई। गांव में जब भी कोई बीमार पड़ता है तो उसे डोली में बैठाकर जोसा तक पहुंचाना पड़ता है। रविवार को भी यही हुआ। गांव में रहने वाले किशन राम की पत्नी दीक्षा को सुबह प्रसव पीड़ा हुई। वो पैदल चलने में असमर्थ थी। महिला की हालत बिगड़ते देख ग्रामीणों ने उसे डोली में बैठाया और किसी तरह जोसा तक पहुंचा आए। बाद में दीक्षा को 108 एंबुलेंस से मुनस्यारी अस्पताल पहुंचाया गया। ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से गांव में सड़क निर्माण की मांग की। उन्होंने कहा कि वो इस बारे में जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के इस गांव की कोई सुध नहीं ले रहा। ग्रामीणों को सड़क के लिए ना जाने और कितना इंतजार करना पड़ेगा।