गैरसैंण...कितना कारगर होगा CM त्रिवेन्द्र मास्टरस्ट्रोक? सामने 2022 का संग्राम है
क्या मात्र फैसला लेने से चीज़ों का हल निकल जाता है? गैरसैंण (uttarakhand capital gairsain) ठोस फैसले के बाद उत्तराखंड की सरकार के ऊपर सवालों की बौछार लगना लाज़मी है।
Mar 8 2020 3:58PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक बार फिर से उत्तराखंड में अपने नाम का परचम बुलन्द कर दिया है। उत्तराखंड राज्य को स्थापित हुए 19 साल हो चुके हैं और त्रिवेंद्र रावत ने आख़िरकार गैरसैंण (uttarakhand capital gairsain) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर बाज़ी मार ली है। इस घोषणा के बाद त्रिवेंद्र रावत ने भविष्य में होने वाले चुनाव में अपना रास्ता साफ़ कर लिया है। उनका यह मास्टरस्ट्रोक भविष्य में कितना कामयाब होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बता पायेगा मगर अभी फ़िलहाल विपक्ष चारो खाने चित्त हुआ पड़ा है। यह बात विपक्ष के लिए ख़तरनाक साबित हो सकती है इसलिए वह अभी से इस चीज़ को एक बड़ा मुद्दा बनाने के भरपूर प्रयास कर रहा है। त्रिवेंद्र ने सही राजनीति करते हुए लोगों के दिलों में घर कर लिया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने राजकाल में इस बात की मात्र कल्पना से ही अपना पेट भर लिया था, मगर वर्तमान के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने यह फैसला लेकर बहुत से लोगों का दिल जीता है।
मगर क्या मात्र फैसला लेने से चीज़ों का हल निकल जाता है? भराड़ीसैंण में सुविधाओं का बेहद अभाव है। चाहे वो बिजली हो या पानी, बुनियादी ढांचा हो या रोड्स की कनेक्टिविटी, इन सब चीज़ों में वो अब भी पिछड़ा हुआ है। अस्थायी राजधानी बनाने के साथ ही सरकार के ऊपर ये ज़िम्मेदारी आ जाती है कि वो भराड़ीसैंण के हालत को नज़रंदाज़ न करते हुए उसके विकास के ऊपर थोड़ा ध्यान दे। आगे भी पढ़िए
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इस ठोस फैसले के बाद उत्तराखंड की सरकार के ऊपर सवालों की बौछार लगना लाज़मी है। सवाल ये की अस्थायी राजधानी ही क्यों? आंदोलन करने वाले लोगों की माँग थी कि भराड़ीसैंण को स्थायी राजधानी का दर्जा मिले। गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए इतना दबाव इसलिए दिया जा रहा है या इतने आंदोलन इसलिए हो रहे हैं क्योंकि उसका परमानेंट राजधानी हो जाना पर्वतीय इलाकों के साथ-साथ वर्तमान राजधानी देहरादून के लिए भी काफ़ी अच्छा है। गैरसैंण का पलड़ा उसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से भी देहरादून से अधिक भारी होता नज़र आता है। गैरसैंण उत्तराखंड के दो छोरों के एकदम बीच में स्थित है। वहीं दूसरी ओर देहरादून आने के लिए उत्तराखंड के कई इलाकों के लोगों को यूपी का चक्कर काटकर आना पड़ता है। शायद इसलिए भी गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए सरकार के ऊपर दबाव डाला जा रहा है।
सरकार ने ये ठोस फैसला ज़रूर किया है,मगर क्या इस निर्णय मात्र से ही संतुष्टि हो लिया जाए? अगर अब भी कोई ये कहता है कि भराड़ीसैंण को न्याय मिल गया है तो शायद यह कथन उचित नहीं होगा। मगर त्रिवेंद्र रावत के इस फ़ैसले से थोड़ी तो उम्मीद जगी है कि शायद भराड़ीसैंण के पक्ष में कुछ फैसले हों। और ये ज़रूरी भी है। अगर ऐसा होता है और अस्थायी राजधानी से स्थायी राजधानी की तरफ़ भराड़ीसैंण आगे बढ़ती है तो उत्तराखंड की जनता के द्वारा इस फैसले का स्वागत दिल खोल कर होगा