उत्तराखंड: अधूरा रहा शहीद यमुना पनेरु का सपना, पहाड़ में करना चाहते थे ये काम
सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू की शहादत से पूरा पहाड़ शोक में डूबा है। उत्तराखंड के इस जांबाज लाल को पर्वतारोहण से गहरा लगाव था। वो रिटायर होने के बाद भी पर्वतारोहण से जुड़े रहना चाहते थे...आगे पढ़िए पूरी खबर
Jun 14 2020 9:12AM, Writer:कोमल नेगी
हल्द्वानी के रहने वाले सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू कुपवाड़ा में पेट्रोलिंग के दौरान शहीद हो गए। नम आंखों के बीच उन्हें आखिरी विदाई दी गई। अब बस उनकी यादें ही बची हैं। सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू की शहादत से पूरा पहाड़ शोक में डूबा है। उत्तराखंड के इस जांबाज लाल को पर्वतारोहण से गहरा लगाव था। वो रिटायर होने के बाद भी पर्वतारोहण से जुड़े रहना चाहते थे, लेकिन अफसोस की उनका ये सपना पूरा ना हो सका। यमुना प्रसाद पनेरू पहाड़ के युवाओं को पर्वतारोहण के लिए तैयार कर कुशल पर्वतारोही बनाना चाहते थे। इसके लिए वो एक ट्रेनिंग सेंटर भी खोलना चाहते थे। सेना में रहने के दौरान उन्होंने पर्वतारोहण में कई उपलब्धियां हासिल की। साल 2012 में उन्हें दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का मौका मिला। इसके बाद कंचनजंघा और नंदादेवी पर भी उन्होंने तिरंगा फहराया। पर्वतारोहण की उनकी कुशल क्षमता को देखते हुए 2013 में सेना ने उन्हें दार्जिलिंग स्थित हिमालयन माउंटेनियरिंग संस्थान में बतौर प्रशिक्षक नियुक्त किया।
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2014 में यमुना प्रसाद प्रशिक्षण देने के लिए भूटान भी गए। पर्वतारोहण और पहाड़ से प्यार करने वाले यमुना प्रसाद सेना से रिटायर होने के बाद उत्तराखंड में पर्वतारोहण संस्थान खोलना चाहते थे, ताकि यहां के युवाओं को पर्वतारोहण की ट्रेनिंग मिल सके। इसे दुखद संयोग ही कहेंगे कि पहाड़ के इस लाल ने पर्वतों की गोद में ही अंतिम सांस ली और देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। यमुना प्रसाद की शहादत की खबर मिलने के बाद से उनकी पत्नी ममता सदमे में है। ममता और उनके बच्चे बार-बार यमुना प्रसाद की फोटो देख कर रो पड़ते हैं। मां माहेश्वरी देवी बेसुध सी हो गई हैं। साल 2004 में माहेश्वरी देवी ने अपने पति को खो दिया था, अब वो जवान बेटे के चले जाने से सदमे में हैं।