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उत्तराखंड में सैन्य धाम बन सकता है, सैन्य स्कूल नहीं? बच्चों को अफसर बनने का अधिकार नहीं?

वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार गुणानंद जखमोला का ये ब्लॉग आप सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।
Jul 26 2020 6:54PM, Writer:गुणानंद जखमोला, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तराखंड में सत्ता किसी की भी रही हो, सच यही है कि सत्ता में वो लोग काबिज हैं जिन्होंने कभी अलग राज्य की लड़ाई नहीं लड़ी। संघर्ष, त्याग और बलिदान नहीं किये। जनता ने ऐसे राज्यविरोधी लोगों को ही सत्ता सौंपी। यही कारण है कि राज्य गठन के 20 साल बाद भी हमारे गांवों की तस्वीर और तकदीर नहीं बदली। कांग्रेस और भाजपा का एकसूत्रीय एजेंडा रहा है कि मुद्दाविहीन राजनीति और वोटों की फसल काटने के लिए किसी भी हद तक चले जाओ। सैन्य धाम भी वोटों के धुव्रीकरण का एक हिस्सा है। भाजपा और कांग्रेस जानते हैं कि उत्तराखंड के लोग प्रदेशहित नहीं देश की सोचते हैं तो उनकी इस सोच का लाभ उठाते हैं। जनता भेड़ की तर्ज पर इनके लोकलुभावने वादों के जाल में फंस जाती है हर बार छली जाती है। नही ंतो रुद्रप्रयाग में सैनिक स्कूल कब का बन जाता। उदाहरण दे रहा हूं। महाराष्ट्र में 2018 को सैनिक स्कूल की अनुमति मिली और आज वहां सैनिक स्कूल में बच्चे शिक्षा हासिल करने लगे हैं।

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उत्तराखंड में हर घर में फौजी है, लेकिन क्या ग्रामीण इलाके के बच्चों को सेना में अफसर बनने का पर्याप्त मौका या अवसर मिलता है? नहीं। क्योंकि पर्वतीय अंचलों में सुविधाएं और मोटिवेशन ही नहीं है। सैनिक स्कूल घोड़ाखाल ने कई पर्वतीय बच्चों को अफसर बना दिया है। यदि रुद्रप्रयाग में भी सैनिक स्कूल होता तो संभव है कि गत माह जो आईएमए की पीओपी हुई, उसमें रुद्रप्रयाग सैनिक स्कूल के बच्चे भी सैन्य अफसर बन कर देश सेवा कर रहे होते। लेकिन विडम्बना यह है कि यह सैनिक स्कूल विवादों और भ्रष्टाचार की गंदी राजनीति का शिकार हो गया है। नेताओं और अफसरों को ग्रामीण बच्चों की परवाह ही कहां?
मैंने पिछले साल जून माह में तत्कालीन डीएम मंगेश घिल्डियाल से सैनिक स्कूल के संबंध में बात की थी। उन्होंने मुझे बताया था कि जल्द ही शासन से बजट जारी होगा और इस स्कूल पर काम होगा। एक साल बीत गया, क्या हुआ, कुछ खबर नहंी। सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के पूर्व प्रिंसीपल ब्रिगेडियर विनोद पसबोला ने इस स्कूल को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी पत्र लिखा था। लेकिन कुछ नहीं हुआ। ब्रिगेडियर पसबोला ने दावा किया कि वो दो साल में स्कूल को तैयार कर सकते हैं। लेकिन नक्कारखाने में भला किसकी तूती बोलती है।

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2014 में पास हुआ था सैनिक स्कूल का प्रस्ताव
रुद्रप्रयाग के जखोली में सैनिक स्कूल का प्रस्ताव पूर्व सीएम जनरल बीसी खंडूड़ी के प्रयास था। केंद्र सरकार ने इसकी अनुमति दी थी और रक्षा मंत्रालय ने बकायदा 2014 में ही सैनिक स्कूल सोसायटी को इसकी अनुमति दे दी थी लेकिन हरीश रावत सरकार में यह काम लटका रहा और बाद में घोटाला होने के विवाद में फंस गया। इसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि त्रिवेंद्र सरकार इस पर काम करेगी। चचा ने एक बार बयान भी दिया लेकिन नतीजा अब तक सिफर है। ग्रामीणों ने आंदोलन भी किया लेकिन कौन सुनता है? क्योंकि सरकार की प्राथमिकता शहर और शहरी हैं ग्रामीण नहीं। ग्रामीण तो वोट की वस्तु हैं।
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला के फेसबुक वॉल से साभार


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