उत्तराखंड की शान नैनी झील पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा, रिसर्च में मिले बुरे संकेत
ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में हमारे बच्चों को नैनी झील सिर्फ तस्वीरों में देखने को मिलेगी।
Aug 31 2020 3:50PM, Writer:Komal Negi
सरोवर नगरी नैनीताल। अपने खूबसूरत तालों के लिए दुनियाभर में मशहूर ये जगह अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। कुदरत के साथ इंसानी खिलवाड़ के चलते नैनी झील का अस्तित्व खतरे में है। विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई और कुदरती संसाधनों के अतिदोहन ने जैव विविधता की डोर तोड़ दी है। ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में हमारे बच्चों को नैनी झील सिर्फ तस्वीरों में देखने को मिलेगी। नैनी झील के साथ-साथ इसे रिचार्ज करने वाले सूखाताल का अस्तित्व भी संकट में है। अत्याधुनिक सेटेलाइट इमेजरी की ताजा शोध रिपोर्ट में हुए इस खुलासे ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। ये रिपोर्ट बताती है कि मास्टर प्लान की अनदेखी कर बेतरतीब ढंग से हुए निर्माण की वजह से नैनी झील का जलस्तर घट रहा है। विकास के नाम पर बने कंक्रीट के जंगल झील के लिए खतरा बन गए हैं।
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कल तक जहां हरीभरी वादियां और उपजाऊ खेत होते थे, अब वहां कंक्रीट की बिल्डिंगें दिखती हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि नैनी झील के कैचमेंट एरिया में 13 सालों के भीतर लगभग 20 फीसदी हरियाली और उपयोगी मिट्टी अनियोजित विकास की भेंट चढ़ गई। अगर हम समय रहते ना चेते तो 50 हजार साल पुरानी नैनी झील जल्द ही इतिहास बनकर रह जाएगी। आपको बता दें कि साल 2015 में नैनी झील के जलस्तर में भारी गिरावट आई थी। तब राष्ट्रीय भूविज्ञान अवॉर्डी एवं वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने झील के जलस्तर में आई गिरावट को लेकर अध्ययन शुरू किया। अपने शोध के लिए उन्होंने अत्याधुनिक सेटेलाइट इमेजरी की मदद ली और झील के स्त्रोतों और कैचमेंट एरिया की स्थिति के बारे में जानकारी जुटाई। इस शोध रिपोर्ट में कई डराने वाले खुलासे हुए हैं। आगे पढ़िए
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इसके मुताबिक साल 2006 से लेकर 2010 तक झील कैचमेंट में 7 प्रतिशत हरियाली और इतनी ही मात्रा में मिट्टी नष्ट हुई। सरोवर नगरी के इर्द-गिर्द 20 प्रतिशत हरे-भरे पेड़ों को काटकर बिल्डिंग बना दी गईं। जलागम क्षेत्र में 50 किमी सीसी सड़कों का जाल बिछा, जिससे वर्षा जल भूजल भंडार में जाने की बजाय बर्बाद हो गया। नैनी झील को जिंदा रखने में सूखाताल का अहम योगदान है, लेकिन अब ये खुद खतरे में है। यहां भी बेतहाशा निर्माण हुआ है। झील में कई टन मलबा जमा होने से नैनी झील तक पानी पहुंचाने वाले मुख्य स्त्रोत बंद हो गए हैं। वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया कहते हैं कि इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। नैनी झील की सेहत पर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो ये झील इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी।