देहरादून में कोरोना के बाद एक और खतरनाक वायरस की एंट्री..जानिए इसके लक्षण
जो लोग कोरोना को हराने में सफल रहे हैं, उनके लिए जिंदगी अब भी आसान नहीं है। इन मरीजों में ब्लैक फंगस संक्रमण के साथ एक और बीमारी तेजी से फैल रही है। आगे पढ़िए पूरी रिपोर्ट
Jun 7 2021 4:26PM, Writer:Komal Negi
कोरोना काल हमारे लिए कई चुनौतियां लेकर आया। पहले कोरोना से लोगों की जान जा रही थी, जो लोग कोरोना को हराने में सफल रहे हैं, उनके लिए भी जिंदगी आसान नहीं है। कोरोना को मात देने वाले मरीजों में ब्लैक फंगस संक्रमण के साथ एक और बीमारी तेजी से फैल रही है। इसका नाम है एस्परजिलस फंगस। ब्लैक फंगस की ही तरह ये संक्रमण भी कोरोना से स्वस्थ हुए मरीजों में ज्यादा दिखता है। मरीज की इम्यूनिटी कम होना इसकी अहम वजह है। एस्परजिलस फंगस से होने वाली बीमारी के 20 पीड़ित देहरादून के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। एस्परजिलस फंगस कोरोना से रिकवर होने वाले मरीजों में ज्यादा घातक रूप में देखा जा रहा है। यह फेफड़ों को ज्यादा संक्रमित करता है। ब्लैक फंगस की तरह ही इस संक्रमण में भी एम्फोटेरिसिन-बी के इंजेक्शन दिए जाते हैं। इसकी अन्य दवाएं भी हैं। महंत इंदिरेश अस्पताल पटेलनगर के वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट एवं कोरोना के नोडल अफसर डॉ. जगदीश रावत के मुताबिक कोरोना के जो मरीज आईसीयू में एडमिट रहे, उनमें से 100 में से 10 मरीजों में ये फंगस दिखा है, जो कि ब्लैक फंगस की ही तरह बेहद खतरनाक है। आगे पढ़िए
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नमी अधिक होना भी इसका एक कारण है। अभी महाराष्ट्र और गुजरात में इस तरह के केस ज्यादा आए हैं। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट एवं कोरोना के नोडल अफसर डॉ. अनुराग अग्रवाल ने भी एस्परजिलस फंगस के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि जिन मरीजों के फेफड़ों में पहले से संक्रमण या खराबी होती है, उनमें एस्परजिलस फंगस के संक्रमण की आशंका अधिक होती है। अगर ये फेफड़ों के साथ दूसरे अंगों में फैला तो घातक हो सकता है। पुरानी टीबी, एलर्जी और फेफड़ों में कैविटी के अंदर बॉल बन जाने से कई बार ये फेफड़ों के अंदर तक पहुंच जाता है। कोरोना को मात देने वाले मरीजों में इस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं। कोरोना से इसका क्या संबंध है, इस पर शोध किए जाने की जरूरत है। इसके इलाज में भी एम्फोटेरिसिन-बी के इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है। क्योंकि फिलहाल प्रदेश में इस इंजेक्शन की कमी बनी हुई है, इसलिए मरीजों के इलाज के लिए दूसरी दवाओं का सहारा लिया जा रहा है।