बच्चों को गढ़वाली सिखानी है? लीजिए आ गई गढ़वाली नर्सरी Rhymes..आप भी देखिए
और हां पसंद आए तो इसे बनाने वाले की तारीफ करने में कंजूसी न करें..ताकि और लोगों को भी प्रोत्साहन मिले। देखिए वीडियो
Jun 26 2021 4:00PM, Writer:तान्या बडोला
अपनी बोली अपनी बाणी में जो मिठास होती है वो मिठास दुनिया की किसी मिठाई में नहीं मिल सकती...और पहाड़ों का पानी जितना मीठा है उतनी ही मीठी है यहां की बोली..चाहे गढ़वाली हो, कुमांउनी हो या जौनसारी..अपनी भाषा कानों में मिसरी घोल देती है। अब आप सोचेंगे की आखिर आज भाषा पर बात हो रही है तो कुछ खास जरूर होगा..जी हां खास है..बेहद खास..इस बात से शायद कई लोग इत्तेफाक रखते होंगे कि बाकी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के लोग अपनी भाषा का इस्तेमाल कम करते हैं..मसलन चार बंगाली आपस में बंगाली में बात करेंगे...महाराष्ट्रियन मराठी में तमिलियन तमिल में और ऐसे ही कई और उदाहरण हैं..खैर हमारा मकसद यहां सिर्फ इतना बताना है कि हमें अपनी भाषा को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना है..नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति अपनी ज़ुबान से रूबरू कराना है। ऐसी ही एक बेहतरीन कोशिश की है देहरादून में रहने वाले रवि थपलियाल ने जिन्होंने बच्चों में बेहद पंसद किए जाने वाली नर्सरी रायम्स को गढ़वाली में बनाया है। आगे देखिए वीडियो
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आज घर घर में मोबाइल और इंटरनेट पहुंच चुका है..गांव हो या शहर हर कहीं यूट्यूब के दर्शक मौजूद हैं।बच्चों के बीच नर्सरी रायम्स का दीवानापन किसी से नहीं छिपा है। तो ये एक बेहतरीन जरिया हो सकता है उन्हें अपनी भाषा सिखाने का..क्योंकि बच्चे इन कविताओं से काफी कुछ सीखते भी हैं।कई लोग ऐसे भी हैं जो हमेशा उत्तराखंड से बाहर ही रहे तो यहां की भाषा नहीं सीख पाए लेकिन अपने बच्चों को सीखाना चाहते हैं.. ऐसे में ये एक अच्छा जरिया हो सकता है उनका अपनी बोली से परिचय कराने का। आप भी अगर इन मजेदार गढ़वाली नर्सरी रायम्स को सुनना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें। और हां पसंद आए तो इसे बनाने वाले की तारीफ करने में कंजूसी न करें..ताकि और लोगों को भी प्रोत्साहन मिले। देखिए वीडियो