उत्तराखंड के इस मंदिर में श्रद्धालुओं को बंदरों से बचाते हैं लंगूर, दल का मुखिया है बंटी लंगूर
हरिद्वार के इस मंदिर में श्रद्धालुओं को बंदरों से बचाते हैं लंगूर, लोगों के साथ घुलमिल कर रहते हैं, लंगूरों के झुंड का मुखिया है बंटी-
Aug 10 2021 8:25PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
उत्तराखंड का हरिद्वार जिला...यहां पर स्थित प्राचीन श्री दक्षिण काली मंदिर कई श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यहां पर लोग पूजा-पाठ और अराधना के साथ ही एक अन्य चीज की वजह से भी आना पसंद करते हैं। हम बात कर रहे हैं लंगूरों की। जी हां, लोग यहां भगवान के दर्शन करने के साथ ही लंगूरों को देखने के लिए भी आते हैं। आप भी रह गए न हैरान? हरिद्वार में स्थिति यह प्राचीन श्री दक्षिण काली मंदिर में बहुत ही समझदार लंगूरों का झुंड है जो कि पर्यटकों और श्रद्धालुओं को खासा लुभा रहा है। बंदरों की तरह ही यह लंगूर का झुंड भी बेहद समझदार है और यह लंगूर बंदरों से श्रद्धालुओं की सुरक्षा और उनके सामान की पहरेदारी करते हैं। यही वजह है कि श्री दक्षिण काली मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों को खूब लुभा रहा है।
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खास बात यह है कि इन लंगूरों के झुंड का एक मुखिया भी है जिसका नाम बंटी है। यहां के दुकानदारों एवं अन्य लोगों ने लंगूरों के नाम भी इंसानों के नाम पर रखे हैं और उनका नाम पुकारने पर वे झटपट पेड़ से नीचे उतर आते हैं। लंगूरों की पहरेदारी के कारण ही बंदर आस-पास नहीं फटकते और सभी श्रद्धालु एवं उनके सामान भी सुरक्षित रहते हैं। बता दें कि इस क्षेत्र में अधिक बंदर होने के कारण कई लोग उनसे होने वाले नुकसान से बचाव के लिए लंगूर पालते हैं क्योंकि लंगूर बंदर की तरह ही समझदार होता है और वह बंदर से कई अधिक फुर्तीला और अधिक ताकतवर भी होता है। इसलिए बंदर लंगूरों से डरते हैं और उनके इलाके में नहीं जाते। इन दिनों सावन के चलते मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है और वहां पर भारी संख्या में लंगूर भी दिखाई दे रहे हैं मगर वे किसी भी श्रद्धालु को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि वे बंदरों से उनकी एवं उनके सामान की सुरक्षा करते हैं। बता दें कि अधिकांश मंदिरों एवं आश्रमों के आसपास उत्पाती बंदर खूब आते हैं और प्राचीन श्री दक्षिण काली मंदिर तो जंगलों से सटा हुआ है। ऐसे में वहां पर भारी संख्या में बंदर आते हैं और यही कारण है कि मंदिर के आसपास लंगूरों का झुंड है जो कि कई सालों से मंदिर के आसपास श्रद्धालुओं की रक्षा कर रहा है। श्रद्धालु उनको बदले में केले, दूसरे फल और प्रसाद खिलाते हैं।
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मंदिर के आसपास कई दुकानें हैं और फलों के ठेले भी लगते हैं। फलों के ठेले लगाने वालों से लंगूर घुलमिल गए हैं। फूलवती बताती हैं कि वे दिनभर पेड़ों के डाल पर बैठे रहते हैं, कोई नुकसान नहीं करते, नाम पुकारने पर आते हैं, कुछ खाने को दो तो खा लेते हैं। किसी श्रद्धालु का बंदर सामान खींचकर भाग जाए तो तो लंगूर उनको खदेड़ देते हैं। वे बताती हैं कि वे तकरीबन 10 साल से मंदिर के परिसर में फलों की रेडी लगा रही हैं और यहां पर सभी लंगूर उनसे घुल मिल गए हैं। सभी लंगूरों के नाम इंसानों के नाम पर ही रखे हैं जैसे ही नाम पुकारो तो झटपट पेड़ से नीचे उतर आते हैं, श्रद्धालुओं के हाथ से फल पकड़ कर खाने के बाद वापस पेड़ पर चल जाते हैं। मंदिर परिसर के पुजारी एवं स्थानीय लोगों का भी कहना है कि परिसर के लंगूर किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और श्रद्धालुओं की सुरक्षा करते हैं।