ये गढ़वाली शॉर्ट फिल्म बेहद शानदार है, अंदर तक झकझोर देती है कहानी..आप भी देखिए
रोजगार-पैसा जरूरी है, लेकिन किस कीमत पर? गढ़वाली शॉर्ट फिल्म ‘बोल दियां ऊंमा’ कुछ ऐसे ही सवाल उठाती है।
Aug 13 2021 8:00AM, Writer:कोमल नेगी
पलायन...पहाड़ की पीड़ा। रोजगार की तलाश में पहाड़ के युवा घर-बार छोड़कर शहरों में चले जाते हैं और पीछे रह जाते हैं उनके बच्चे, घर-परिवार। जिनके लिए जिंदगी हर गुजरते दिन के साथ मुश्किल होती जाती है। न जाने हम किस सुख के पीछे भाग रहे हैं। इस सुख को पाने के लिए पूरी जिंदगी खप जाती है। हम बच्चों के साथ उनका बचपन नहीं जी पाते, जीवनसाथी संग शांति के दो पल नहीं बिता पाते। रोजगार-पैसा जरूरी है, लेकिन किस कीमत पर? गढ़वाली शॉर्ट फिल्म ‘बोल दियां ऊंमा’ ऐसे ही कुछ सवाल उठाती है। पलायन और गांव की महिलाओं की पीड़ा पर बनी ये शानदार फिल्म आपको भीतर तक झकझोर कर रख देगी। एक जगह फिल्म का नायक कहता है ‘आज मेरी छुट्टी का आखिरी दिन है, और आखिरी बस भी छूटने वाली है। गांव वालों के पास कितना कुछ है दिल्ली में रह रहे अपनों को देने के लिए, लेकिन इनके परिवार वाले सालों तक दिल्ली में रहकर भी इनके लिए कुछ नहीं भेज पाते’। आगे देखिए वीडियो
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इसी गांव में एक महिला है, जो दिल्ली जा रहे गांव के युवक को अपनी पीड़ा बता रही होती है। पैरों में टूटी चप्पलें हैं। चप्पल में धागा बांधकर काम चला रही है। मन में पति की बेरूखी को लेकर तमाम शिकायतें हैं। कहती है ‘उन्हें कह देना कि मैं इंतजार कर लूंगी, लेकिन उम्र तो इंतजार नहीं करती। वो इस साल भी नहीं आए तो मैं यमुना में कूद जाऊंगी’। फिल्म वाकई शानदार है। ये फिल्म आपको भीतर तक न हिला दे तो कहना। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की गाइडेंस में तैयार फिल्म का डायरेक्शन कविलास नेगी ने किया है। ओरिजनल स्टोरी का क्रेडिट वल्लभ डोभाल को जाता है। कलाकारों में अंजली नेगी और राजेश नौगांई का काम शानदार है। ड्रोन से फिल्माए गए सीन खूबसूरत लगे हैं, जिसका क्रेडिट गोविंद नेगी को जाता है। फिल्म के प्रोड्यूसर अतुलान दास गुप्ता हैं। पहाड़ में ‘बोल दियां ऊंमा’ जैसी फिल्में बनती देख सचमुच बहुत सुकून मिलता है। ये फिल्म जो सवाल खड़े करती है, आप भी एक बार उनके बारे में सोचिएगा जरूर। देखिए ये शॉर्ट फिल्म