देहरादून पहुंचे अफगानिस्तान में फंसे पूर्व सैनिक, तालिबानियों को 60 हजार डॉलर देकर बची जान
अफगानिस्तान में फंसे देहरादून मूल के भारतीय सेना के कई पूर्व सैनिक समेत 60 लोग बीते रविवार की देर रात को पहुंचे दून, सुनाई आपबीती, 60 हजार डॉलर देकर बख्शी जान, परिजनों की भर आईं आंखें।
Aug 23 2021 3:10PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
अफगानिस्तान में हालात बेकाबू हो रहे हैं। कई भारतीय तालिबान के राज में वहां डर कर जीने पर मजबूर हैं। तालिबान के कब्जे के बाद वहां से भारतीयों को वापस लाने की कोशिश सरकार कर रही है। अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों में से कई लोग उत्तराखंड के हैं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सभी को सुरक्षित देवभूमि वापस लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इनमें से अधिकांश भारतीय सेना के पूर्व सैनिक हैं जो कि सेवानिवृत्ति के बाद अफगानिस्तान में नौकरी करने चले गए थे और तालिबान के कब्जे के बाद वहीं फंस गए। अफगानिस्तान में फंसे देहरादून के साठ लोगों को बीते रविवार की देर रात को भारत वापस लाया गया। तालिबान के चंगुल से छूट कर अपने वतन वापस आने की खुशी सभी लोगों के चेहरे पर साफ झलक रही थी। बता दें कि यह सभी लोग देहरादून के रहने वाले हैं जो कि अफगानिस्तान में नौकरी करने गए थे। अफगानिस्तान से देहरादून पहुंचे सभी लोगों का उनके परिजनों ने स्वागत किया। रविवार को दून के अलग-अलग क्षेत्रों के 60 लोग दिल्ली तक फ्लाइट पर आए। यहां से बस के द्वारा सभी को सीधे श्यामपुर स्थित एक वैडिंग प्वाइंट में पहुंचाया। यहां स्वागत के लिए परिजन पहले से ही जमे हुए थे। जैसे ही अफगानिस्तान से लौटे लोग बस से उतरे, परिजनों ने उन पर फूलों की बारिश की। स्वागत के दौरान सभी के परिजन भावुक हो गए। तालिबानियों के खौफ के बीच में देहरादून पहुंचे लोगों ने अफगानिस्तान में अपने हालात बयां किए तो सभी की आंखें भर आईं।
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लक्ष्मीपुर के निवासी नितेश क्षेत्री ने बताया कि अफगानिस्तान में दहशत का महौल है। उन्होंने कहा कि मौत आसपास ही घूम रही है। उन्होंने बताया कि उनको बीते कुछ दिन कैसे हालातों से गुजरना पड़ा यह केवल वे ही जानते हैं। उन्होंने अफगानिस्तान में घास और पत्तल के ऊपर सोकर तीन रातें गुजारीं। उन्होंने बताया कि तालिबान के कब्जे के बाद से अब तक हम नहाए तक नहीं। जो जहां था बस जान बचाने के लिए खाली हाथ लौटा। डेनमार्क दूतावास के अधिकारियों ने हमारी मदद की है। उनको स्कॉट के माध्यम से एक होटल में लाया गया। उनको पत्तलों और घास के ऊपर सोना पड़ा। अफगानिस्तान के नाटो और अमेरिकी सेना के साथ पिछले 12 वर्षों से काम कर रहे प्रेमनगर निवासी अजय छेत्री ने कहा कि हमने तालिबानियों को 60 हजार डॉलर नहीं दिए होते तो शायद आज हम उनकी गोलियों का शिकार हो गए होते। अजय के मुताबिक, उनके दोस्त विकास थापा और उनकी कंपनी के कई लोगों को तालिबानियों ने उनको रिहा करने की एवज में 60 हजार अमेरिकन डॉलर की मांग की थी। ऐसे में जिंदगी बचाने के लिए विकास थापा सहित उनकी कंपनी के लोगों ने पैसा इकट्ठा कर तालिबानी लोगों को 60 हजार अमेरिकन डॉलर दिए। इसके बाद तालिबानियों ने उनको एयरपोर्ट तक लाकर छोड़ा.
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अफगानिस्तान से दून वापस लौटे पूर्व सैनिक रण बहादुर ने बताया कि अफगानिस्तान में जिस तरह के हालात पैदा हो रखे हैं वो बयां नहीं हो सकते। उन्होंने बताया कि जिस होटल में वे ठहरे हुए थे, वहां खुलेआम बाहर गोलीबारी हो रही थी और सड़कों पर तालिबानी घूम रहे थे। उन्होंने कहा कि वे भारतीय सेना से हैं और इसलिए उनको तालिबान के कब्जे के बावजूद भी इतनी घबराहट महसूस नहीं मगर उन्होंने कहा कि वहां पर बाकियों के हालात देखकर उनको ऐसा लग रहा था कि वे अगले दिन का सूरज भी नहीं देख पाएंगे। वहीं अफगानिस्तान से लौटे पूर्व सैनिक मोहित कुमार क्षेत्री ने बताया कि वह ब्रिटिश दूतावास में 2020 से सिक्योरिटी गार्ड का काम कर रहे थे उन्होंने बताया कि जब तालिबान का कब्जा हुआ था तब उनको सुरक्षित एक होटल में रखा गया मगर उसके बावजूद भी बाहर खुलेआम तालिबानी घूम रहे थे और बेकसूर लोगों को मौत के घाट उतार रहे थे। उन्होंने कहा कि अगले दिन ही उनको फ्लाइट से इंडिया भेजने की तैयारी की गई थी लेकिन उनको पहले दुबई लाया गया वहां से इंग्लैंड और उसके बाद इंग्लैंड से उनको वापस इंडिया लाया गया। बता दे कि अब भी अफगानिस्तान में उत्तराखंड के कई पूर्व सैनिक समेत नौकरी करने गए लोग फंस रखे हैं और उत्तराखंड सरकार द्वारा उनको वापस लाने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किया जा रहा है।