देहरादून में ये अफगान बादशाह लाया था 'बासमती चावल', जानिए सदियों पुराना इतिहास
पूरी दुनिया में करीब 90 फीसदी बासमती चावल का निर्यात भारत ही करता है, और इनमें भी देहरादून का बासमती चावल सबसे उम्दा माना जाता है।
Sep 1 2021 1:03PM, Writer:Komal Negi
जब बात चावल की हो तो सबसे पहले जेहन में बासमती चावल का ही नाम आता है। ये चावल की सबसे अच्छी किस्म होती है, जिसकी खुशबू हमें दीवाना बना देती है। पूरी दुनिया में करीब 90 फीसदी बासमती चावल का निर्यात भारत ही करता है, और इनमें भी देहरादून का बासमती चावल सबसे फेमस है। इसका स्वाद जितना लजीज है, उतनी ही दिलचस्प है इस चावल के दून पहुंचने की कहानी। इस स्टोरी में हम आपको बासमती के देहरादून पहुंचने के सफर के बारे में बताएंगे। इसका रिश्ता अंग्रेजों और अफगानियों के बीच हुए युद्ध से जोड़ा जाता है। यह युद्ध 1839 से 1842 के बीच अफगानिस्तान में अंग्रेजी सेना और अफगानिस्तान के सैनिकों के बीच लड़ा गया था। जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई। कहा जाता है कि इसके बाद अफगान के बादशाह दोस्त मोहम्मद खान को निर्वासित कर दिया गया। निर्वासन के दौरान अंग्रेजों ने दोस्त मोहम्मद खान को मसूरी में रखा, वहां उनके लिए एक किला भी बनवाया गया था।
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दोस्त मोहम्मद खान के बारे में कहा जाता है कि वो खाने के शौकीन थे, लेकिन मसूरी का स्थानीय चावल उन्हें नहीं भाया। वो पंजाब प्रांत के बासमती चावल खाते थे। तब दोस्त मोहम्मद खान ने तरकीब लगाई और बासमती का बीज देहरादून मंगवा लिया। फिर क्या था, बासमती का बीज नए भौगोलिक क्षेत्र में ऐसा खिला कि इसने अपनी एक नई पहचान बना ली और दुनियाभर में मशहूर हो गया। बासमती चावल की खास किस्मों में देहरादून बासमती को अव्वल दर्जे का माना जाता है। हालांकि जिस रफ्तार से देहरादून में कंक्रीट का जंगल उग रहा है, उससे धीरे-धीरे देहरादून बासमती का उत्पादन क्षेत्र कम हो रहा है। उत्पादन क्षेत्र भले ही घट रहा हो, लेकिन देहरादून बासमती की अब भी खूब डिमांड है। इसकी महक और स्वाद दोनों ही लाजवाब हैं।