image: Salt and shuger price hike in border area village of uttarakhand

उत्तराखंड: चीन सीमा पर बसे गांवों में नमक 130 रूपये किलो, चीनी 150 रूपये किलो

भारत-चीन सीमा पर बसे उत्तराखंड के गांवों में महंगाई ने तोड़े सभी रिकॉर्ड, असल भाव से 5 गुना अधिक का मिल रहा है सामान, नमक की कीमत 130 रुपए किलो तो चीनी की कीमत 150 रुपए किलो पहुंची
Sep 23 2021 6:14PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

कोरोना काल और ऊपर से उत्तराखंड में बरसात के कारण बदहाल रास्तों का खामियाजा सीधे आम आदमी और गरीबों को भुगतना पड़ रहा है। कोरोना में महंगाई से कोई अछूता नहीं रहा मगर भारत-चीन सीमा पर उत्तराखंड के गांवों में महंगाई ने हदें पार कर दी हैं। भारत-चीन सीमा पर बसे गांवों में महंगाई ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बुर्फू, लास्पा और रालम गांवों में जरूरी सामान में आठ गुना तक महंगाई होने से लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। एक न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक सीमा पर बसे गांवों में असल भाव से 4 से 5 गुना अधिक का सामान मिल रहा है। जो नमक मुनस्यारी में 20 रुपये किलो मिल रहा गया, वहीं नमक सीमा के गांवों में 130 रुपये किलो के भाव से लोग खरीद रहे हैं। केवल नमक ही नहीं बल्कि चीनी, सब्जियां, दाल, चावल सबके दामों में आग लग चुकी है। मंहगाई इस कदर बढ़ गई है कि सीमा पर बसे गांव के लोग परेशान हो चुके हैं। लोगों का कहना है कि उनके पास आर्थिकी के जरिए बेहद सीमित हैं मगर जरूरत की चीजों की कीमत उनको 4 से 5 गुना अधिक चुकानी पड़ रही है। ऐसे में उनके सामने यह बड़ी चुनौती है।

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बता दें कि भारत-चीन सीमा पर हर साल मार्च से नवंबर तक तीन ग्रामसभाओं के 13 से ज्यादा तोक (छोटे-छोटे गांव) के लोग माइग्रेशन करते हैं। इसी दौरान सेना की कई चौकियों से भी सैनिक नीचे आ जाते हैं। मगर खराब रास्तों और कोरोना के कारण इस बार महंगाई आसमान छू रही है और ग्रामीण महंगाई की चपेट में आ गए हैं। मुख्य सड़क से 52 से 73 किमी तक दूरी बसे ग्रामीणों ने सरकार से मदद की गुहार लगाते हुए कहा है कि यदि सरकार उनके लिए उचित इंतजाम नहीं कर सकती तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर भारत-चीन सीमा पर महंगाई बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं। पहला कारण है कोरोना। कोरोना के बाद मजदूरों ने ढुलाई का भाड़ा दोगुना कर दिया है। 2019 में प्रति किलो ढुलाई का भाड़ा 40 से 50 रुपये था। अब यही प्रति किलो 80 से 120 रुपये तक है। दूसरा यह कि कोरोना के कारण नेपाल से आने वाले मजदूरों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है। नेपाल मूल के मजदूर सस्ते में मिल जाते थे। महंगाई बढ़ने का तीसरा मुख्य कारण उत्तराखंड के पहाड़ों पर हो रही मूसलाधार बरसात है जिसने वहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। पैदल रास्ते पूरी तरह टूट चुके हैं। जिस वजह से गांव के लोग बाजार तक सामान खरीदने नहीं जा पा रहे हैं और उनको मजबूरी में सामान घोड़े और खच्चर वालों से खरीदना पड़ता है.

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मुनस्यारी के सप्लायर कुंदन सिंह का कहना है कि वे 54 सालों से आइटीबीपी और माइग्रेशन के गांवों में सप्लाई का काम करते हैं मगर ऐसी महंगाई उन्होंने भी पहली बार देखी है। उनका कहना है कि रास्ते खराब होने के कारण घोड़े और खच्चरों पर ढुलाई कर रहे मजदूरों से लोग सामान खरीदने पर मजबूर हैं जिस वजह से महंगाई बढ़ी है। उनका कहना है कि नेपाली मजदूरों के ना आने से भी कीमतों में उछाल आया है। वहीं पिथौरागढ़ की जिला पूर्ति अधिकारी चित्रा रौतेला का कहना है कि माइग्रेशन गांव को जोड़ने वाले रास्ते बंद होने के कारण गांव वालों की परेशानियां बढ़ी हैं। ढुलाई का भाड़ा बढ़ने से जरूरी सामान की कीमतों में भी उछाल आया है और इस पर डीएम से चर्चा कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। एक न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक भारत-चीन सीमा पर मौजूद उत्तराखंड के गांवों में वर्तमान में नमक 130 रुपए किलो, चीनी 150 किलो, सरसों का तेल 275 किलो ,आटा 150 किलो, प्याज 125 किलो, मोटा चावल 150 किलो और दाल 200 किलो बिक रही है।


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