image: Kotdwar Sidhbali Temple History and Belief

सिद्धबली मंदिर: कोई नहीं लौटा खाली हाथ, 2025 तक फुल है बुकिंग...पौराणिक इतिहास जानिये

कोटद्वार क्षेत्र का प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर। यहां दर्शनों के लिए हर दिन लगा रहता है श्रद्धालुओं का तांता। क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूरे देश से लोग यहां आकर मन्‍नत मांगते हैं। यहां होने वाले भंडारे के लिए वर्षों पहले बुकिंग करनी पड़ती है। पढ़िए..
Dec 21 2021 10:39AM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क

उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है, शायद इसीलिए इसे देवभूमि भी कहते हैं। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में कोटद्वार के प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर में हर दिन दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता है। यहां प्रदेश से ही नहीं बल्कि पूरे विश्व से हिंदू श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्‍नत मांगते हैं। कहते हैं यहां अगर सच्चे मन से पूजा अर्चना करो तो आपकी मुराद जरूर पूरी होती है। श्री सिद्धबली मंदिर की खास बात ये है कि यहां मुराद पूरी होने पर भंडारा देना होता है। कई भक्तों की मन की मुराद पूरी होने के बाद वर्तमान में भंडारे के लिए वर्षों पहले बुकिंग करनी पड़ती है। अगर आप आज बुकिंग करते हैं तो कुछ वर्ष बाद ही इस पुण्‍य कार्य कर सकते हैं। कोटद्वार में पौराणिक खोह नदी के तट पर सिद्धों का डांडा में विराजते हैं श्री सिद्धबली।

Sidhbali Temple History and Beliefs

कहते हैं कलयुग में हनुमान जी ही ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों पर सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। सिद्धबली मंदिर भी हनुमान जी को समर्पित है। आगे सिद्धबली मंदिर का पौराणिक इतिहास जानिये..

उत्तराखंड के पौड़ी क्षेत्र में कोटद्वार नगर से करीब ढाई किमी दूर, नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगा पवित्र श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर खोह नदी के किनारे पर करीब 40 मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है। कहते हैं कि सिद्धबली हनुमान मंदिर से कोई भक्त आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। इस प्रकार भक्तों की संख्या इतनी ज्यादा है कि मन्नत पूरी होने के बाद दिए जाने वाले विशेष भंडारों की बुकिंग फिलहाल 2025 तक के लिए फुल है। सिद्धबली हनुमान मंदिर में हर मंगलवार, शनिवार एवं रविवार को और जनवरी-फरवरी, अक्टूबर-नवंबर व दिसंबर माह में हर-रोज भंडारा होता है। भारतीय डाक विभाग की ओर से साल 2008 में श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर को समर्पित डाक टिकट भी जारी किया गया है। यहां प्रसाद के रूप में गुड़, बताशे और नारियल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। कहते हैं गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी, जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा भी कहा जाता है।

Sidhbali Temple History and Beliefs

पौराणिक अभिलेख बताते हैं कि यहां पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का रास्ता रोक लिया था। दोनों में कई दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनों में से कोई पराजित नहीं हुआ तो हनुमान जी अपने रूप में आए और सिद्धबाबा से वरदान मांगने को कहा। सिद्धबाबा ने हनुमान जी से यहीं रहने की प्रार्थना की, जिसके बाद सिद्धबाबा और बजरंग बली के नाम पर इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा। यहां आज भी मान्यता है कि बजरंग बली अपने भक्तों की मदद करने को साक्षात रूप में यहां विराजमान रहते हैं।


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