उत्तराखंड: यहां शनि देव को कहते हैं 'कोतवाल'..जब से बना मंदिर, कम हुए सड़क हादसे!
शनि भगवान करते हैं धर्मनगरी की सुरक्षा, जब से स्थापित हुआ है शनि धाम मंदिर, बंद हो गए हैं एक्सीडेंट
Feb 19 2022 7:48PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
उत्तराखंड की धर्म नगरी हरिद्वार में वैसे तो मां गंगा के श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है मगर क्या आप जानते हैं कि इस धर्म नगरी की सुरक्षा का जिम्मा भगवान शनि देव का है। धर्म नगरी की रक्षा के लिए यहां के प्रवेश द्वारों पर शहर के कोतवाल अर्थात भगवान शनि देव ले मंदिर स्थापित किए गए हैं। आपको बता दें कि हरिद्वार के शनि धाम मंदिर में विराजमान शनि देव हरिद्वार के लोगों की रक्षा करते हैं। बता दें कि हरिद्वार के 8 प्रवेश द्वारों पर शनिदेव के मंदिरों की स्थापना की गई है और ऐसी मान्यता है कि शनिदेव के मंदिरों की स्थापना के बाद सड़क हादसे रुक गए हैं। शनि देव के बारे में कई लोगों का यह मिथक है कि वे अशुभ हैं और दुख का कारक हैं मगर ऐसा नहीं है। पूरी प्रकृति में संतुलन पैदा करने का काम शनिदेव का ही है और वह हर व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। बता दें कि हरिद्वार के आठ प्रवेश द्वारों में शहर के कोतवाल अर्थात भगवान शनि देव के मंदिर स्थापित किए गए हैं और इनकी मान्यता काफी अधिक है। हर शनिवार यहां पर सुबह से देर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।
हरिद्वार में सबसे पहला शनि मंदिर 25 साल पहले बहादराबाद क्षेत्र में स्थापित किया गया था और इसके बाद शहर के 8 प्रवेश द्वारों पर शनिदेव के मंदिरों की स्थापना की गई है। बताया जाता है कि बहादराबाद हरिद्वार मार्ग पर 25 साल पहले तक काफी सड़क दुर्घटनाएं हुआ करती थीं और इसको देखते हुए सबसे पहले इसी मार्ग पर स्थित शनि धाम स्थापित किया गया। बताया जाता है कि इस मार्ग पर शनि मंदिर के स्थापित होने के बाद यहां होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में भारी कमी आई है और उसमें जाने वाली जानों के आंकड़ों में भी काफी कमी आई है। इसके बाद हरिद्वार के तमाम प्रवेश द्वारों पर कुल आठ शनि देव मंदिर स्थापित किए गए हैं। मान्यता है कि शनि भगवान प्रवेश द्वारों पर स्थापित होकर न केवल पूरे शहर की रक्षा करते हैं बल्कि लोगों को न्याय भी दिलाते हैं। इस सिद्ध शनि देव मंदिर की मान्यता लोगों के बीच में इतनी है कि हर शनिवार को यहां पर सुबह से ही सरसों का तेल और तिल चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है और दोपहर में यहां पर विशाल भंडारे का आयोजन भी होता है। शाम को कीर्तन के बाद देर रात तक पूजा चलती है।