देवभूमि में नंदा देवी लोकजात यात्रा, कैलाश के लिए रवाना हुई देवताओं की डोलियां
Nanda Devi Lokjat Yatra नंदा धाम कुरुड़ मां नंदा का मायका है। जहां नंदा देवी का प्राचीन मंदिर और दुर्गा मां की पत्थर की स्वयंभू शिलामूर्ति मौजूद है।
Aug 24 2022 6:18PM, Writer:कोमल नेगी
चमोली के प्रसिद्ध सिद्धपीठ नंदाधाम में नंदा लोकजात यात्रा का विधिवत शुभारंभ हो गया।
Nanda Devi Lokjat Yatra Uttarakhand
सोमवार को मां नंदा की डोली घाट विकासखंड स्थित सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर से कैलाश के लिए रवाना हुई। कई पड़ावों को पार करने के बाद मां नंदा की देव डोलियां 3 सितंबर को वेदनी कुंड और बालापाटा बुग्याल पहुंचेंगी। नंदा सप्तमी के दिन कैलाश में मां नंदा देवी की पूजा अर्चना के साथ लोकजात का विधिवत समापन होगा। पूजा समाप्ति के बाद मां नंदा राजराजेश्वरी की देव डोली 6 माह के लिए अपने ननिहाल थराली के देवराडा में निवास करेगी। जबकि, नंदा देवी की डोली बालापाटा में लोकजात संपन्न होने के बाद सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर में ही श्रदालुओं को दर्शन देगी।
यहां आपको नंदा देवी राजजात यात्रा और नंदा लोकजात यात्रा के अंतर के बारे में भी बताते हैं। Nanda Devi Raj Jat Yatra नंदा राजजात यात्रा 12 साल के अंतराल पर कुरुड़ मंदिर से शुरू की जाती है। 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें वर्ष में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की थी। इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण समेत 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है। भगवान शिव नंदा के पति हैं। नंदा के मायके वाले नंदा को कैलाश विदा करने जाते हैं और फिर वापस लौटते हैं। यात्रा की अगुवाई चौसिंगा खाडू करता है।