image: tehri garhwal princely state 3 october shastra pooja

गढ़वाल रियासत की परंपरा, जिसे पंवार वंश ने शुरू किया था..आज भी जिन्दा है ‘शस्त्र पूजा’ का विधान

03 अक्टूबर 2022 को, सोमवार के दिन, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र,शोभन योग, पुनीत पावन महाअष्टमी, की परम्परागत शुभ तिथि पर टिहरी राजपरिवार का पारम्परिक शस्त्र पूजन संपन्न होगा।
Sep 22 2022 9:20PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क

उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा कितनी भव्य और विशाल है, इस बात का अंदाजा तब होता है..जब हमारी आंखों के सामने हमारा गौरवशाली इतिहास जीवंत हो उठता है। इन्हीं में से कुछ गौरवशाली कहानियां हैं हमारे राजपरिवारों की..तो चलिए आज एक बार फिर से उस पुराने वक्त को याद कर लीजिए...दरअसल 3 अक्टूबर को पुराना दरबार ट्रस्ट द्वारा पारम्परिक त्योहार महाष्टमी पूजन को पूर्ण विधि विधान से मनाया जाएगा। 03 अक्टूबर 2022 को, सोमवार के दिन, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र,शोभन योग, पुनीत पावन महाअष्टमी, की परम्परागत शुभ तिथि पर टिहरी राजपरिवार का पारम्परिक शस्त्र पूजन संपन्न होगा। इस अवसर पर शोभनयोग, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के संधिकाल में टिहरी राजपरिवार की कुलदेवी भगवती राजराजेश्वरी का अभिषेक एवं पारंपरिक शस्त्र पूजन अनुष्ठान भी संपन्न होगा। पुराना दरवार ट्रस्ट के मुख्य संयोजक, राज परिवार के वंशज, वर्तमान में टिहरी दरवार के मुख्य संरक्षक ठाकुर भवानी प्रताप सिंह पंवार एवं आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल ने संयुक्त वक्तव्य में बताया कि शस्त्रपूजन - परंपरा की शुरुआत गढ़वाल रियासत में पवांर वंश के द्वारा आरंभ की गई थी‌। जिसमें महाराज कनकपाल ने दशहरे के दिन शस्त्रपूजन का विधान चांदपुर गढ़ी से आरम्भ किया था। तत्पश्चात ये परंपरा देवलगढ़ से होते हुए श्रीनगर व टिहरी तक बड़े ही धूमधाम से मनाई जाने लगी। आगे पढ़िए

टिहरी रियासत काल में इस दिन राजकोष की भी घोषणा की जाती थी। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से जागीदारों, थोकदारों द्वारा दरबार में कुलदेवी राजराजेश्वरी की पूजा के साथ भेंट चढ़ाने की प्रक्रिया संम्पन होती थी। इसी के साथ समस्त कुल देवताओं व वीरपुरुषों आदि का भी पूजन व स्मरण किया जाता है। दशहरा (महाअष्टमी) पूजन में कुलदेवी राजराजेश्वरी का महाभिषेक एवं शस्त्र-पूजन का अनुष्ठान आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल जी के करकमलों से सम्पन्न किया जायेगा।इस पुनीत अवसर पर आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल जी के परिवार द्वारा श्री केदारनाथ जी के प्रसाद स्वरूप, दिव्य ब्रह्मकमल एवं भगवान श्री बदरीविशाल जी के प्रसाद स्वरूप में दिव्य तुलसीमाला डिमरी समुदाय के प्रतिनिधि द्वारा अर्पित की जायेगी। इस अवसर पर पारम्परिक बलि का सांकेतिक विधान भी सम्पन्न किया जायेगा। जिसमें सांकेतिक रूप में भुजेला (कद्दू) की बलि दी जायेगी। बलि विधानमें राजवंश से सम्बंधित पुरातन जागीरदार- थोकदार जी द्वारा चक्रचोट (खड्ग-प्रहार) की प्राचीन परम्परा का निर्वहन किया जायेगा।


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