नैनीताल झील की शान हैं लैला-मजनूं, बारिश के दिनों में रोते हैं दोनों पेड़..इनके बारे में जानिए
नैनी झील की खूबसूरती बढ़ाने वाले ये पेड़ क्योंकि अक्सर जोड़े में पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें लैला-मजनू कहकर पुकारा जाता है।
Mar 6 2023 1:19PM, Writer:कोमल नेगी
प्रेम कहानियों का जिक्र होता है तो लैला-मजनूं के प्यार की मिसाल जरूर दी जाती है।
Nainital Lake Laila Majnu Tree
आज हम भी आपको नैनीताल के लैला-मजनू के बारे में बताने जा रहे हैं, इससे पहले कि आपको गलतफहमी हो जाए, हम ये क्लियर कर देना चाहते हैं कि ये लैला-मजनू कोई इंसान नहीं, बल्कि दो पेड़ हैं। नैनीताल झील के किनारे मिलने वाले ये पेड़ बेहद खूबसूरत होने के साथ ही झील की सतह में डूबे दिखाई देते हैं। ये पेड़ क्योंकि अक्सर जोड़े में पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें लैला-मजनू कहकर पुकारा जाता है। झील की खूबसूरती में चार चांद लगाते इन पेड़ों पर बसंत के आते ही हरे और पीले रंग के फूल महकने लगे हैं, जिससे पेड़ों और झील की सुंदरता कई गुना बड़ जाती है। डीएसबी के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर ललित तिवारी ने बताया कि नैनीताल में लैला-मजनू पेड़ को नैनी झील की सुंदरता बढ़ाने के लिए लगाया गया है। आगे पढ़िए
इसे ‘वीपिंग विलो’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी शाखाएं झुकी हुई होती हैं, जो पानी को छूती हैं। कहते हैं बारिश के दिनों में दोनों पेड़ रोते हुए प्रतीत होते हैं। यह पेड़ बेहद घना होता है, जिसकी शाखाएं नीचे की ओर झुकी होती हैं। जब बारिश की बूंदें इसकी लंबी पत्तियों पर गिरती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह पेड़ रो रहा हो। इसकी ऊंचाई 30 से 50 फीट होती है और पत्तियां पतली और नुकीली होती हैं। प्रोफेसर तिवारी कहते हैं कि इस पेड़ को जोड़ों में ही लगाया जाता है। यूरोप में इसका इस्तेमाल मेडिसिनल प्लांट के रूप में किया जाता है। लैला मजनू के पेड़ का बॉटनिकल नाम सैलिक्स बेबीलोनिका है। सैलिक्स बेबीलोनिका सैलीसेसी परिवार का वृक्ष है। ये पानी के किनारे नमी वाले स्थानों पर पाया जाता है। यूरोप में भी इसकी काफी प्रजातियां पाई जाती हैं।