पहाड़ के चाचा-भतीजे की जोड़ी के आगे हारा पलायन, अपने गांव को बना दिया शानदार टूरिस्ट प्लेस
Bhagat rawat chain singh rawat सांकरी-सौड़ गांव की ये तस्वीर सचमुच सुकूनदेह है। प्रदेश के हर गांव में ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए।
Nov 22 2023 6:19PM, Writer:कोमल नेगी
पलायन के लिए बदनाम रहे पहाड़ में अब तस्वीर बदलने लगी है।
Bhagat Rawat Chain Singh Rawat Success Story
पिछले कुछ सालों में यहां रिवर्स पलायन हुआ है, साथ ही प्रदेश युवा अब बाहरी प्रदेशों में धक्के खाने के बजाय पहाड़ में रहकर ही रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं। आज हम आपको उत्तरकाशी जिले के भगत सिंह रावत और उनके भतीजे चैन सिंह रावत की सक्सेस जर्नी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने स्वरोजगार की पहल कर अपने गांव को टूरिस्ट प्लेस के तौर पर विकसित किया है। देशभर के पर्यटकों का ध्यान अपने गांव की ओर खींचा है। भगत रावत और उनके भतीजे चैन सिंह रावत सांकरी-सौड़ गांव में रहते हैं। भगत सिंह रावत बताते हैं कि साल 1995 से उनके क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही शुरू हुई, लेकिन भगत सिंह रावत का सफर इससे कई साल पहले शुरू हो चुका था। वो बताते हैं कि लगभग 40 साल पहले कुछ लोग केदार कांठा ट्रैकिंग के लिए आए थे, तब भगत सिंह ने उन पर्यटकों को केदारकांठा Kedarkantha Track Sankri Village का रास्ता बताया। भगत सिंह इस क्षेत्र में बकरियां चराने जाया करते थे, जाते वक्त पर्यटक उन्हें 75 रुपये देकर गए, जो कि उनके लिए बड़ी रकम थी। आगे पढ़िए
बाद में वो घरवालों से छिपकर पर्यटकों को ट्रैकिंग कराने लगे। भगत रावत के काम में उनके भतीजे चैन सिंह रावत ने भी साथ दिया। चैन सिंह रावत ने उत्तरकाशी से टूरिज्म में पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही पर्वतारोहण का भी कोर्स किया है। अपनी पढ़ाई पूरी कर वे अपने गांव साँकरी-सौड़ वापस आ गए। यहां साल 2002 में हरकी दून प्रोटेक्शन एंड माउंटेनियरिंग एसोसिएशन की शुरुआत की, जिससे आज उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर सहित 250 से 300 लोग जुड़े हुए हैं। उनकी इस पहल के कारण अब गांव के ज्यादातर घरों में होम स्टे बना दिए गए हैं। पर्यटक यहां उत्तराखंड के पारंपरिक घरों (Kedarkantha Track Sankri Village) में रुकते हैं और यहां का पहाड़ी खाना खाते हैं। जब भी कोई गेस्ट आता है तो उसका पहाड़ी अंदाज में खूब सत्कार किया जाता है। गांव में होम स्टे चलाने के साथ खेती करने वाले बलबीर सिंह बताते हैं कि इस काम में खर्च काटकर उन्हें लगभग ढाई से तीन लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है। चैन सिंह रावत कहते हैं कि उनके गांव से अब पलायन खत्म हो गया है, गांव की ये तस्वीर सचमुच सुकूनदेह है। प्रदेश के हर गांव में ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए।