उत्तराखंड में फूलदेई पर्व शुरू, पहाड़ों में हर घर-आंगन फ्योंली बिखरेगी.. आपको पता है क्यूं ?
उत्तराखंड में प्रकृति को पहाड़ के लोक जीवन से जोड़ने की कथाओं में से एक, चैत्र मास में होने वाले पीले रंग के फूल फ्यूंली को लेकर भी है...
Mar 14 2024 12:58PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
आप सभी लोगों को फूलदेई की बहुत शुभकामनाएं। प्रकृति के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं। ये प्रकृति ही है, जो हमें खुद से जोड़े रखती है। उत्तराखंड के लोक जीवन में प्रकृति का विशेष महत्व है, इसी प्रकृति के सम्मान का पर्व है फूलदेई।
Phuldei festival and Story of Phyoli flower
यह त्यौहार छोटे बच्चे मनाते हैं। राज्य का प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई चैत्र मास की प्रथम तिथि से आठ दिनों तक मनाया जाता है। उत्तराखंड के लोक जीवन में, यहां की संस्कृति में फूलदेई की खास जगह है। नववर्ष के आगमन पर स्वागत की परम्परा वैसे तो पूरी दुनिया में पाई जाती है पर फूलदेइ पर्व के रूप में देवतुल्य बच्चे हिन्दू समाज के नव वर्ष का स्वागत करते हैं। फूलदेई के त्यौहार को मनाने के लिए बच्चे शाम को फ्योंली, बुरांश के फूल और पयाँ के पत्तों को तोड़कर अपनी डलियों-कुंजियों (टोकरियों) में भरते हैं। इसके बाद बच्चे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साथ में मिलकर घर-घर जाकर सभी घरों के दरवाजों पर फूल डालते हैं। बच्चे फूल डालने के साथ ही मधुर लोकगीत भी गाते हैं।
पहाड़ में गांव के लोग बच्चों को लयाँ (भुनी हुई चौलाई), गुड़ या अन्य कोई खाने की चीज और थोड़े बहुत पैसे देते हैं। फूलदेई के अंतिम आठवें अंतिम दिन बच्चे अपने आराध्य की डोली की पूजा करके विदाई कर त्योहार सम्पन्न करते हैं। फूलदेई मनाने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। उत्तराखंड में कहीं इस डोली को फूलों की देवी माना जाता है तो कहीं बच्चे इन्हें राजा या देवता कहते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में इस त्यौहार के साथ राजकुमारी फ्योंली की एक लोक कथा भी जुड़ी हुई है।
फूलदेई की परंपरा लोकगीतों और लोककथाओं के जरिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती रही। उत्तराखंड में पर्यावरण बचाने की ये मुहिम सदियों से चली आ रही है। बच्चों को फूलदेई के माध्यम से पहाड़ से, पेड़-पौधों, फूल-पत्तियों और नदियों से प्रेम करने की सीख दी जाती है। प्रकृति को पहाड़ के लोक जीवन से जोड़ा जाता है, और कुछ कथाएं बताई जाती हैं। ऐसी ही कथाओं में से एक, पहाड़ों में चैत्र मास में होने वाले पीले रंग के फूल फ्यूंली को पहाड़ के लोक जीवन से जोड़ती है।
राजकुमारी फ्योंली की कहानी
दरअसल हिंदू नववर्ष के इस समय उत्तराखंड के पहाड़ों पर एक विशेष पीले रंग का सुन्दर फूल खिलता है। जिसे फ्योंली कहते हैं। कहा जाता है कि पहले हिमालय के पहाड़ों में एक राजकुमारी रहती थी। जिसका नाम फ्योंली था। जैसे जैसे फ्योंली बड़ी होती गयी वो बीमार रहने लगी और मुरझाने लगी। उसके मुरझाने पर पहाड़ के पेड़ पौधे मुरझाने लगते। पर फ्योंली बीमार ही होती चली गयी। वो पहाड़ में सबकी लाडली राजकुमारी थी, उसे देख पंछी उदास रहने लगे। फिर एक दिन फ्योंली हमेशा के लिए मुरझा गयी, उसके बाद फ्योंली को जंगल में उसके पसंदीदा पेड़ के पास मिट्टी में दबा दिया गया। जिस जगह पर फ्योंली को मिट्टी में दबाया गया था वहां एक पीला फूल उग आया, जिसका नाम फ्योंली के नाम पर रख दिया गया। लोक बाल कथाओं में कहा जाता है कि फ्योंली की याद में छोटे बच्चे फूलदेई का त्यौहार मनाते हैं।