image: Wedding of Two Trees Took Place in Uttarakhand

देवभूमि में हुआ अनोखा विवाह, वट वृक्ष दूल्हा तो पीपल बनी दुल्हन, दिल्ली-मुंबई से आए बाराती

'एक विवाह ऐसा भी' वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह की सभी रस्में संपन्न हुईं। सैकड़ों लोग इस विवाह के गवाह बने और शगुन आंखर गाए।
May 24 2024 3:22PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क

लड़का-लड़की की शादी तो सभी ने देखी होगी, लेकिन क्या आपने वृक्षों की शादी के बारे में सुना है ? दरअसल बागेश्वर जिले के अतंर्गत में पीपल और वट वृक्ष की अनोखी शादी कराई गई। यहाँ वट वृक्ष को दूल्हा बनाया गया जबकि पीपल वृक्ष को दुल्हन की तरह सजाया गया।

Wedding of Two Trees Took Place in Uttarakhand

सदियों से उत्तराखंड देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है, यहाँ खूबसूरत वादियों के साथ-साथ अनोखी संस्कृति और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है। चार धाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री – हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। बीते दिनों जनपद बागेश्वर में एक अनोखी वर्षों पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया गया। जिसमें दफौट क्षेत्र के मयूं गांव में धूमधाम के साथ पीपल और वट वृक्ष की शादी कराई गई, इस अनोखे विवाह के लिए नैनीताल से आचार्य केसी सुयाल पहुंचे थे साथ ही इस विवाह के गवाह बने और शगुन आंखर गाए।

दूल्हा बना वट वृक्ष तो दुल्हन बनी पीपल

इस विवाह समारोह में नैनीताल, हल्द्वानी, दिल्ली और मुंबई के प्रवासी साक्षी बने तथा वट वृक्ष को दूल्हा बनाकर डोली में बैठाया और गांव के गोलज्यू मंदिर ले जाया गया, इसके बाद गाजे-बाजे और परंपरागत नृत्य के साथ गांव के सड़क मार्ग से होकर बारात गांव के हरज्यू सैम और देवी मंदिर के प्रांगण में पहुंची, जहां सभी वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न हुए। मंदिर में ग्रामीणों ने पीपल वृक्ष को दुल्हन के रूप में सजाया था। वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह की सभी रस्में संपन्न हुईं। नैनीताल से आए आचार्य केसी सुयाल ने कहा कि सनातन संस्कृति में वृक्ष पूजन और पर्यावरण संरक्षण जैसे आयोजन अन्य किसी संस्कृति में देखने को नहीं मिलते।

पर्यावरणविद हरीश जोशी ने की सराहना

Wedding of Two Trees
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इस आयोजन पर लेखक और पर्यावरणविद हरीश जोशी ने बताया कि इस प्रकार के आयोजन समाज को एकजुट करने में सहायक होते हैं और इससे विलुप्त होती परंपराएं भी पुनर्जीवित होती हैं। ये परंपरा हमारी संस्कृति में वर्षों पहले होती थी। संस्कृति को जीवित रखना और उसका पालन करना हम सभी की प्राथमिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यह संस्कृति हमें सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एकजुट रखती है। मूल संस्कृति को आज के समाज तक पहुंचाने का एकमात्र तरीका उसे मनाना है। आज का कार्यक्रम नई पीढ़ी के लिए एक उदाहरण पेश करेगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से जंगलों में आग लगातार बढ़ रही है, उससे मानव जीवन का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।


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