उत्तराखंड: 2 लाख का इनामी आरोपी गिरफ्तार, 25 साल पहले सरेआम हत्या कर हुआ था फरार
आरोपी ने वर्ष 1988 में उसने बद्रीनाथ में तत्कालीन डीजीसी, क्रिमनल बालकृष्ण भट्ट की दिनदहाड़े चाकू से हत्या की थी. तब से उत्तराखंड पुलिस के अलावा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों के विशेष पुलिस बल भी इस गिरफ्तारी में जुटे हुए थे.
Jan 25 2025 6:15PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एसटीएफ की स्मार्ट पुलिसिंग में उत्तराखंड एसटीएफ ने अपना दमखम साबित करते हुये पिछले 25 वर्ष से फरार 02 लाख के ईनामी हत्या के आरोपी सुरेश शर्मा को जमशेदपुर झारखण्ड से गिरफ्तार कर लिया है।
Murderer Suresh Sharma, who was absconding for 25 years, arrested
उत्तराखंड में संगठित अपराधियों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए वर्ष 2005 में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया। इस टास्क फोर्स को दो प्रमुख कार्य सौंपे गए थे, जिनमें से एक था आरोपी अंग्रेज सिंह को गिरफ्तार करना, जो पुलिस अभिरक्षा से भाग गया था. दूसरा कार्य था आरोपी सुरेश शर्मा गिरफ्तार करना, जिसने बद्रीनाथ में डीजीसी बालकृण भट्ट की सरेआम हत्या की थी। आरोपी अंग्रेज सिंह को 2007 में नागपुर में उत्तराखंड पुलिस के साथ मुठभेड़ में मार गिराया गया। वहीं, आरोपी सुरेश शर्मा लगातार फरार चल रहा था।
कई राज्यों की पुलिस कर रही थी तलाश
सुरेश शर्मा की गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ, उत्तराखण्ड की स्थापना के समय से प्रयासरत थी। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों के विशेष पुलिस बल भी इस गिरफ्तारी में जुटे हुए थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उत्तराखण्ड के नवनियुक्त पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ ने राज्य में लंबे समय से वांछित इनामी अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एसटीएफ नवनीत सिंह भुल्लर को विशेष निर्देश दिए। इन निर्देशों के तहत, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नवनीत सिंह ने पुलिस उपाधीक्षक एसटीएफ आरबी चमोला के निकट पर्यवेक्षण में एक टीम का गठन किया और लंबे समय से फरार इस अपराधी की गिरफ्तारी के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान किए।
ऐसे हुई पहचान
पुलिस महानिरीक्षक अपराध एवं कानून व्यवस्था, नीलेश आनंद भरणे ने जानकारी दी कि एसटीएफ की गठित टीम ने पूर्व में प्राप्त तकनीकी और भौतिक सूचनाओं का वर्तमान सूचनाओं के साथ मिलान करते हुए अपराधी की पहचान की। इसके बाद, 23 जनवरी 2025 को निरीक्षक अबूल कलाम के नेतृत्व में उप निरीक्षक विघादत्त जोशी, उप निरीक्षक नवनीत भण्डारी, हेड कांस्टेबल संजय कुमार, कांस्टेबल मोहन असवाल और कांस्टेबल जितेन्द्र की एसटीएफ टीम ने जमशेदपुर, झारखंड से अभियुक्त सुरेश शर्मा को गिरफ्तार किया।
28 अप्रैल 1999 को बालकृष्ण भट्ट की चाकू से हत्या की
अभियुक्त सुरेश शर्मा, जो दयाराम शर्मा का पुत्र है, बद्रीश आश्रय, अंकुर गैस एजेंसी के निकट, लिसा डिपो रोड, आशुतोष नगर ऋषिकेश का निवासी है। वर्ष 1988 में उसने तीर्थनगरी बद्रीनाथ में "क्वालिटी" नामक एक रेस्टोरेंट खोला था। वर्ष 1999 में, तत्कालीन डीजीसी, क्रिमनल बालकृष्ण भट्ट, जो चमोली जनपद में तैनात थे, के साथ रेस्टोरेंट की भूमि को लेकर सुरेश शर्मा का विवाद बढ़ गया। इस विवाद के चलते, 28 अप्रैल 1999 को सुरेश शर्मा ने बालकृष्ण भट्ट की दिनदहाड़े चाकू से हत्या कर दी, जिससे तीर्थ नगरी बद्रीनाथ में हड़कंप मच गया। सुरेश शर्मा को घटना स्थल से गिरफ्तार किया गया, लेकिन कुछ समय बाद उसे जमानत मिल गई। हालांकि, जमानत के कुछ दिनों बाद उच्चतम न्यायालय ने उसकी जमानत खारिज कर दी। इसके बाद, गिरफ्तारी से बचने के लिए सुरेश शर्मा फरार हो गया।
जमशेदपुर, झारखंड से हुआ गिरफ्तार
फरार अपराधी सुरेश शर्मा से संबंधित पूर्व में एकत्रित तकनीकी और भौतिक सूचनाओं का पुनः गहन विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण से प्राप्त नए तथ्यों के डिजिटल और भौतिक सत्यापन के लिए टीम को महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और झारखंड भेजा गया। टीम ने एक संदिग्ध व्यक्ति की पहचान की, जिसके पास मनोज जोशी, पुत्र रामप्रसाद जोशी, निवासी 24 परगना, पश्चिम बंगाल का आधार पहचान पत्र था। अपराधी का 24 वर्ष पुराना फोटो था, इसलिए वर्तमान में चेहरे की पहचान करना संभव नहीं हो रहा था। इस कारण टीम ने संदिग्ध के बारे में गहन जांच-पड़ताल की और पूर्व में सुरेश शर्मा के कारागार चमोली से फिंगर प्रिंट प्राप्त किए। इसके बाद, संदिग्ध के उठने-बैठने के सार्वजनिक स्थानों से गोपनीय रूप से फिंगर प्रिंट एकत्रित कर उनका मिलान किया गया। चेहरे की पहचान के लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया। जब टीम ने पहचान स्थापित कर ली, तो अभियुक्त को 23 जनवरी 2025 को जमशेदपुर, झारखंड से गिरफ्तार किया गया और संबंधित माननीय न्यायालय में पेश कर ट्रांजिट रिमांड प्राप्त कर उत्तराखंड लाया गया।
पहले बना मनीष बाद में बना मनोज जोशी
अभियुक्त सुरेश शर्मा ने पूछताछ के दौरान बताया कि उपरोक्त मामले में मेरी 40 दिन बाद जमानत हुई थी। जमानत के बाद मैं रिश्तेदारों के पास मुंबई चला गया। वहां कुछ दिन रहने के बाद मेरी जमानत खारिज हो गई। मेरे परिवार ने मुझे वापस बुलाया, लेकिन मैंने घर लौटने के बजाय कोलकाता जाने का निर्णय लिया। जहाँ मैंने पहले सड़क किनारे ठेली लगाकर खाना बनाने का काम शुरू किया। कुछ समय बाद मैंने कपड़ों का व्यापार किया और लॉकडाउन के बाद से मैं एक मेटल ट्रेडिंग कंपनी में काम कर रहा हूं, जो स्क्रैप का कारोबार करती है। इस कंपनी के काम के सिलसिले में मैं भारत के विभिन्न शहरों में यात्रा करता रहता हूं और इसी कारण से मैं जमशेदपुर आया था। यहां मैंने अपनी पहचान छिपाने के लिए मनीष शर्मा नाम अपनाया और बाद में मनोज जोशी के नाम से अपने दस्तावेज तैयार कर लिए। वर्तमान में मेरी एक पत्नी है, जिसका नाम रोमा जोशी है, और वह पश्चिम बंगाल की निवासी है।