image: inspiring story of suraj singh bhakuni

पहाड़ का सपूत..घर में इकलौता कमाने वाला शहीद हुआ, कमरे में लिखा था ‘सेना ही मेरी जिंदगी’

कुछ कहानियां पढ़कर दिल में सवाल उठता है कि क्या वास्तव में उत्तराखंड की धरती में ऐसे जांबाज़ जन्म लेते हैं ?
Dec 3 2018 7:05AM, Writer:आदिशा

हर किसी का अपना अपना जुनून होता है, कोई बड़े होकर इंजीनियर बननता चाहता है, कोई डॉक्टर और को सिविल सर्विसेज में जाना चाहता है। इस बीच कुछ मतवाले ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए देश की सेना ही सब कुछ है। जाने वो कैसा जुनून है, जो ऐसे जांबाजों की रगों में दौड़ता है। आज कहानी उत्तराखंड के उस सपूत की, जो दो दिन पहले शहीद हो गया। नाम है सूरज सिंह भाकुनी...घर में इकलौता कमाने वाला बेटा शहीद हो गया, घर में बहन की शादी की तैयारियां हो रही थीं। अल्मोड़ा जिले के भनोली तहसील के पालड़ी गांव के रहने वाले थे लांस नायक सूरज सिंह भाकुनी। पालड़ी गांव एक ऐसा गांव हैं जहां करीब 80 परिवार रहते हैं। इनमें से भाकुनी परिवार के 8 लड़के सेना में हैं। साल 2000 में इस गांव के रमेश सिंह भी ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए थे। अब जानिए शहीद सूरज की कहानी।

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शहीद सूरज सिंह भाकुनी 8 कुमाऊं रेजीमेंट में लांस नायक थे। वो अपने घर में एकमात्र कमाने वाले थे। जब सूरज सेना में भर्ती हुआ, तो पिता को कुछ उम्मीदें नज़र आई थीं। हाल ही में सूरज ने अपने पिता को नया घर बनाने के लिए पैसे भी दिए थे।सूरज छुट्टी पर घर आया था और उस दौरान नया घर बनकर तैयार भी हो गया था। बीती छुट्टियों में जब सूरज अपने गांव आया था, तो गांव वाले उसकी शादी के बारे में पूछने लगे थे। सूरज का जवाब था कि जब मेरी बहन की शादी होगी, उसके बाद मैं शादी करूंगा। साल 2014 में सूरज बीए की पढ़ाई कर रहा था तो नैनीताल में किराए पर एक कमरा लिया था। अपने कमरे की दीवार पर उसने लिखा था ‘My life is army’, सेना ही मेरी जिंदगी है। सेना के लिए सूरज के दिल में कुछ इस तरह का जुनून था।

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सूरज के पिता का नाम नारायण सिंह है, जिनकी उम्र 51 साल है। नम आंखों से पिता बताते हैं कि सूरज को सेना में जाने का शौक पहले से ही था। पढ़ाई के वक्त से ही उसने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी थी। अब सवाल ये है कि सूरज के दिल में देशसेवा का जुनून कहां से आया ? दरअसल सूरज के दादा स्वर्गीय हरसिंह भाकुनी आनरेरी कैप्टन रह चुके हैं। उन्होंने साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध भी लड़ा था। दादा से ही सूरज ने अपने दिल में देशसेना का जुनून पैदा किया। आज हम सभी के बीच वो सपूत नहीं है। गांव वाले सूरज के जाने से स्तब्ध हैं। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा कि हमेशा हंसते खेलने रहने वाला वो बच्चा कुर्बान हो गया। धन्य हैं ऐसे वीर सपूत और धन्य है उत्तराखंड की धरती। जय हिंद


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