उत्तराखंड में केदारनाथ फिल्म पर बवाल, कई जिलों में रिलीज पर लगी रोक
आज केदारनाथ फिल्म को रिलीज होना है लेकिन उससे पहले ही उत्तराखंड के कई जिलों में इस फिल्म की रिलीज पर रोक लग गई है।
Dec 7 2018 3:50AM, Writer:कपिल
उत्तराखंड में सारा अली खान और सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म केदारनाथ को लेकर बवाल बढ़ता ही जा रही है। एक तरफ हाईकोर्ट ने फिल्म पर रोक लगाने से इनकार किया है। दूसरी तरफ सीएम ने जिलाधिकारियों और एसएसपी से कहा है कि जिलों की कानूनी व्यवस्था देखकर ही कोई फैसला लें। ऐसे में पौड़ी, उधमसिंह नगर, नैनीताल और देहरादून जिले में फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई है।इस फिल्म को लेकर सरकार की पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में एक बैठक की। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सभी जिलों को फैसलों के बारे में बताया गया। समिति ने फिल्म देखी और इसके बाद फैसला लिया कि जिलाधिकारी और एसएसपी कानूनी व्यवस्था की स्थिति देखेंगे।
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इससे पहले ही बीजेपी नेता अजेंद्र अजय ने फिल्म के रिलीज पर आपत्ति दर्ज करवाई थी। देहरादून में प्रदर्शनकारियों ने सहस्त्रधारा रोड स्थित टाइम स्क्वायर, राजपुर रोड स्थित पैसेफिक मॉल, सिल्वर सिटी, क्रॉस रोड मॉल जैसे सिनेमाघरों में पहुंचकर प्रदर्शन किया और पिल्म रिलीज ना करने की अपील की। सिल्वर सिटी और प्रभात सिनेमाघरों में फिल्म के पोस्टर फाड़े गए और नारेबाजी की गई। हालात बिगड़ते देख सिनेमाघर मालिक ने पुलिस को इस बात की सूचना दी। कुछ ऐसा ही कोटद्वार, पौड़ी, उधमसिंहनगर जिलों में भी देखने को मिला है ऐसे में डीएम नीरज खैरवाल ने उधमसिंह नगर, डीएम सुशील कुमार ने पौड़ी, डीएम एस ए मुरुगेशन ने देहरादून और डीएम विनोद कुमार सुमन ने नैनीताल जिले में भी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी। अब जानिए इस फिल्म की कहानी
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दिल-दिमाग पर छा जाने में ये फिल्म पूरी तरह से नाकाम है। ना जाने किस जल्दबाजी में अभिषेक कपूर ने ये फिल्म तैयार की है। फिल्म में ना तो इश्क की गहराई है और न ही केदारनाथ त्रासदी का दर्द। बेमन से बनाई फिल्म लगती है केदारनाथ। कहानी केदारनाथ धाम की है, जहां मंसूर नाम का शख्स पिट्ठू का काम करता है। इस बीच केदारनाथ के ही पंडितजी की बिटिया मुक्कू यानी सारा अली खान है। मंसूर और मुक्कू को इश्क हो जाता है लेकिन मंसूर का धर्म अलग है। मुक्कू केदारनाथ के सबसे बड़े पंडितजी की बिटिया है तो ये रिश्ता नामुमकिन है। बीच में मुक्कू और मंसूर के बीच कुछ ऐसे दृश्य भी दिखाए गए हैं, जो आंखों को अच्छे नहीं लगते। आखिरकार मुक्कू की शादी हो जाती है और मंसूर की बुरी तरह पिटाई हो जाती है। सबकुछ बिखर जाता है और फिर लंबे इंतजार के बाद आती है केदारनाथ आपदा। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे आप उम्मीद करें। पहला हाफ बहुत ही सुस्त और दूसरा कोई उम्मीद नहीं जगाता। डायरेक्शन बेहद कमजोर है और कहानी कुछ भी नया नहीं है। फिल्म ना तो प्रेम कहानी के तौर पर छू सकी और ना ही केदारनाथ त्रासदी को दिखा सकी।