उत्तरकाशी के रैथल गांव के युवाओं का बेमिसाल काम, ऐसे लड़ी पलायन से जंग
उत्तरकाशी के रैथल गांव के युवाओं की कोशिश बेमिसाल है। इस काम के लिए हर जगह उनकी तारीफ हो रही है।
Jan 3 2019 11:42AM, Writer:Aadisha
इरादे अगर पक्के हों और कोशिश इमानदार तो कोई भी मुश्किल आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। रैथल गांव के युवा इस कहावत को सच करते नजर आते हैं। ये वो युवा हैं जिन्होंने रोजगार के लिए अपने घर नहीं छोड़े बल्कि अपने घरों को ही रोजगार का जरिया बना लिया। युवाओं की इस कोशिश का नतीजा ये निकला कि अब ये लोग सैलानियों का स्वागत कर हर महीने ना केवल हजारों रुपये कमा रहे हैं, बल्कि अपनी संस्कृति और परंपराओं को दूसरे लोगों तक भी पहुंचा रहे हैं। उत्तरकाशी के रैथल गांव के रहने वाले इन युवाओं की देखादेखी आस-पास के दूसरे गांवों के बेरोजगार युवा भी होम स्टे योजना से जुड़ रहे हैं।रैथल गांव उत्तरकाशी से 42 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। ये प्रसिद्ध दयारा बुग्याल का बेस कैंप है, जहां 175 परिवार रहते हैं। कुछ समय पहले तक यहां के युवा आजीविका के लिए पशुपालन और खेती करते थे, लेकिन इससे गुजारा हो पाना मुश्किल था।
यह भी पढें - नैनीताल और मसूरी से दूर होगी बड़ी परेशानी, सांसद अनिल बलूनी का एक और बड़ा काम
एक साल पहले एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना ने यहां के ग्रामीणों को होम स्टे योजना का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया। जल्द ही गांव के दस बेरोजगार युवाओं ने होम स्टे अपनाया, और अब ये हर महीने पर्यटकों की मेहमाननवाजी कर 15 से 30 हजार रुपये तक कमा रहे हैं। योजना से जुड़ने के बाद ग्रामीणों ने अपने पुश्तैनी घरों को रहने लायक बनाया। जो भी इन घरों में रहने आता है वो इनकी मेहमाननवाजी का कायल हो जाता है। होम स्टे योजना के जरिए अब कई घरों के चूल्हे जल रहे हैं। पहाड़ों में रहने वालों के लिए रोजगार का इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं। बस आपके पास एक घर और टॉयलेट की सुविधा होनी चाहिए। होम स्टे संचालकों की मानें तो देशी-विदेशी सैलानियों को पहाड़ की संस्कृति से बेहद प्यार है। यहां का खान-पान हो या फिर रहन-सहन पर्यटकों के लिए सब कुछ नया है। यहां रहकर वो खुद को ना केवल प्रकृति के करीब पाते हैं, बल्कि कई खुशनुमा पलों का हिस्सा भी बनते हैं। रैथल की देखादेखी अब दूसरे गांवों के बेरोजगार भी होम स्टे योजना से जुड़ने के लिए आगे आ रहे हैं।