देवभूमि के इस गांव में सीता माता ने ली थी भू-समाधि..अब दुनिया इसे ‘‘सीता माता सर्किट’’ कहेगी
सितोलस्यूं को सीता माता सर्किट के तौर पर विकसित किया जाएगा, इस जगह का रिश्ता माता सीता से है...
Jul 5 2019 9:09AM, Writer:कोमल नेगी
उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है। इस जगह का संबंध महाभारत के साथ-साथ रामायण से भी है। इसी धरा पर स्थित है सितोलस्यूं, कहा जाता है कि ये वही जगह है, जहां माता सीता ने भू-समाधि ली थी। पौड़ी में स्थित सितोलस्यूं में 11वीं शताब्दी में बने मंदिर मिलते हैं। सितोल्स्यूं में आज भी प्राचीन सीता मंदिर, लक्ष्मण मंदिर और वाल्मिकी आश्रम देखे जा सकते हैं। ये मंदिर 11 वीं शताब्दी में बनाए गए थे। सितोल्स्यूं में स्थित है फलस्वाड़ी गांव, जहां माता सीता का मंदिर है। कहा जाता है कि माता सीता ने यहीं भू-समाधि ली थी। यहां सीता माता का प्राचीन मंदिर भी हुआ करता था, जो कि धरती में समा गया था। यहां हर साल नवंबर में मनसार का मेला लगता है। उस दौरान क्षेत्र में उगने वाली घास से एक रस्सा बनाया जाता है। माना जाता है कि घास के ये रेशे माता सीता के केश हैं, जिन्हें लोग प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं। इस गांव के लिए अब बड़ा ऐलान किया गया है। आगे जानिए...
अब हो रही हैं कोशिशें
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बड़े अफसोस की बात है कि यहां के इतिहास के बारे में आज भी लोग ज्यादा नहीं जानते। जानते भी कैसे, इस क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र पर लाने के कभी प्रयास ही नहीं हुए। खैर देर से ही सही इस जगह ने शासन का ध्यान अपनी तरफ खींचा है।
सीएम त्रिवेंद्र की बड़ी पहल
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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पौड़ी में ‘सीता माता सर्किट’ विकसित करने का ऐलान किया है। उम्मीद है अब सितोल्स्यूं में विकास रफ्तार पकड़ेगा। ये क्षेत्र नए पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित होगा। जिससे यहां के लोगों को बहुत फायदा होगा।
सीता माता का ध्यान किया
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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सितोलस्यूं में सीता माता के मंदिर में पूजा-अर्चना की, साथ ही इस क्षेत्र को विकसित करने का वादा किया। यूसैक ने सीता माता सर्किट को उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ये एक शानदार पहल
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पौड़ी में सीता माता सर्किट विकसित किया जाना एक शानदार पहल है। उम्मीद है इससे उत्तराखंड के वो धार्मिक स्थल भी नया जीवन पाएंगे, जिनसे लोग अब तक अनजान हैं। ये क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर आएंगे तो इनका विकास होगा, संरक्षण होगा। साथ ही स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे।