देवभूमि के इन घरों को देखकर वैज्ञानिक भी हैरान, 400 साल पुराना गौरवशाली इतिहास जानिए
कारीगरी और टेक्नोलॉजी का जबरदस्त नमूना देखना है, तो उत्तराखंड चले आइए। यहां 400 साल पुराने भवन आज भी उसी मजबूती से खड़े हैं। न जाने कितने भूकंप झेल चुके हैं। देखिए तस्वीरें
Sep 11 2019 3:16PM, Writer:आदिशा
देवभूमि की परंपराएं, यहां की कारीगरी और यहां की संस्कृति खुद में गौरवशाली अतीत को समेटे हुए है। आज हम आपको जिस बारे में बताने जा रहे हैं, वो है यहां की कारीगरी...आज के शब्दों में कहें तो आर्किटेक्चर। जो तस्वीरें हम आपको दिखा रहे हैं..उन तस्वीरों में बने घर देवभूमि की चौकट शैली का समृद्ध इतिहास बताने के लिए काफी है। आज वैज्ञानिक भी हैरत में हैं कि 350 से 400 साल पहले, जब कुछ साधन ही नहीं थे तो ऐसे भवनों का निर्माण कैसे हो गया ? पुरातत्वविदों, भूकंप वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और इतिहासकारों के लिए ये भवन कौतुहल का विषय बने हुए हैं। उत्तरकाशी जिले के सीमांत क्षेत्रों में आप जाएंगे, तो आपको ये भवन आज भी उसी शान से खड़े मिलेंगे। यहां की सभ्यता कितनी पुरानी है, इसका अंदाजा आप तस्वीरें देखकर ही लगा सकते हैं। यमुना घाटी के कोट बनाल गांव में सबसे पुराना भवन मौजूद है और आपको हैरानी होगी कि अद्भुद कारीगरी से बना ये भवन 5 मंजिला है। स्थानीय भाषा में इसे पंचपुरा कहते हैं। ये भवन 1720, 1803, 1991, 1999 और न जाने कितने बड़े भूकंपों के झटके आसानी से झेल चुके हैं। जब 1991 में इस घाटी मेें भूकंप आया था, तो गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर में पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रोफेसर स्व. प्रदीप सकलानी कोटी गांव में गए थे। वहां पंचपुरा भवन का गहन सर्वे किया था। इस भवन की कॉर्बन डेटिंग कराई गए तो पता चला कि ये 350 से 400 साल पुराना है। आइए अब आपको इन भवनों की खासियत भी बता देते हैं।
रंवाई घाटी में ऐसे अनगिनत घर हैं
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रवांई घाटी के सौ से ज्यादा गांव ऐसे हैं, जहां ऐसे भवनों का निर्माण हुआ है। दो मंजिल वाले भवन को दोपुरा, तीन मंजिल वाले भवन को तिपुरा, चार मंजिल वाले भवन को चौपुरा और पांच मंजिल वाले भवन को पंचपुरा कहा जाता है।
जबरदस्त कारीगरी का नमूना
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इन भवनों को आसान से आयाताकार आर्किटेक्चर के जरिए शानदार रूप दिया जाता था। इनकी ऊपरी मंजिल में शौचालय और स्नानागार जैसी व्यवस्थाएं की गई।
आज भी जिंदा है इतिहास
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स्थानीय तौर पर जितनी सामग्री उपलब्ध हो पाई, बस उनसे ही इन भवनों को तैयार किया गया। भवनों पर लकड़ी के बीम का इस्तेमाल होता था।
ये है खासियत
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हर एक कमरे की ऊंचाई कम होती थी और खास बात ये है कि ये भवन भूकंप रोधी हैं। छोटे दरवाजे, छोटी-छोटी खिड़कियां और ऊपरी मंजिल पर बनी बालकनी इन भवों की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।