मिलिए देहरादून की महिला बस कंडक्टर निशा से, इसके जज्बे को हमारा सलाम
रोडवेज बस में टिकट काटती निशा अपने काम से खुश है, निशा जैसी बेटियां ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं, जानिए इनकी कहानी...
Dec 4 2019 6:53PM, Writer:कोमल
बदलते वक्त के साथ समाज में महिलाओं की भूमिका भी बदल रही है। अब उनकी दुनिया सिर्फ चूल्हे चौके तक सीमित नहीं है। वो घर की दहलीज से बाहर निकल रही हैं, जिन क्षेत्रों को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है, उनमें काम कर अपनी काबिलियत साबित कर रही हैं। अब देहरादून की रहने वाली निशा को ही देख लें। निशा रोडवेज में बस कंडक्टर हैं। 25 साल की निशा देहरादून से हरिद्वार के बीच चलने वाली जेएनयूआरएम की बस में काम करती हैं। बाएं हाथ में सीटी पकड़े और दाएं हाथ में टिकट रोलर लेकर टिकट काटती निशा महिलाओं की पारंपरिक छवि को तोड़ती नजर आती है। वो अपना काम ईमानदारी से करती हैं, यात्री भी उनके साथ तमीज से पेश आते हैं। बस में बैठे यात्रियों को वो आने वाले बस स्टॉप के बारे में भी बताती हैं, ताकि उनका स्टेशन छूट ना जाए। निशा जैसी कई महिलाएं रोडवेज की बसों में बतौर कंडक्टर काम कर रही हैं।
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निशा का परिवार भानियावाला में रहता है। पिता प्राइवेट नौकरी करते हैं, भाई पढ़ रहा है। कंडक्टर बनने का ख्याल कैसे आया, इस सवाल के जवाब में निशा कहती हैं कि बेरोजगारी बहुत है, काम करने के ऑप्शन कम हैं, इसीलिए जो भी काम मिले ईमानदारी से करना चाहिए। वो लंबे वक्त तक ढंग का जॉब देखती रहीं। फिर कंडक्टर की पोस्ट के लिए वैकेंसी निकली। उन्होंने भी एग्जॉम दिया और फिर इंटरव्यू में चुन ली गईं। नौकरी कांट्रैक्ट पर है, पर सैलरी ठीक है। कंडक्टर के 450 पदों के लिए वैकेंसी निकली थी, जिनमें से आधे पदों पर लड़कियों की तैनाती हुई है। निशा सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक ड्यूटी करती हैं। दून-हरिद्वार के बीच रोज तीन फेरे लगते हैं। ड्यूटी पूरी करने के बाद वो रोडवेज की बस से घर लौट जाती हैं। अपने काम से निशा खुश है, और उस पर गर्व महसूस करती हैं। कुल मिलाकर निशा आज की नारी का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो नाजुक नहीं हैं। देहरादून में महिलाएं अब ऑटो-टैक्सी यहां तक की रिक्शा चलाती भी दिख जाती हैं। निशा जैसी बेटियां ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं, जो कि बदलाव को स्वीकार कर चुकी हैं, समाज की वर्जनाओं को तोड़कर लगातार आगे बढ़ रही हैं।