पहाड़ की कल्पना...इस बेटी के आगे दिव्यांगता ने मानी हार, 23 साल की उम्र में रचा इतिहास
दिव्यांग कल्पना को देखकर हर कोई अफसोस जताता था, पर कल्पना के पिता सकल चौहान ने ऐसे लोगों को जवाब देने की ठान ली थी...
Dec 5 2019 10:00AM, Writer:कोमल
लोग बेटा-बेटी की समानता की बात करते हैं, पर सच तो ये है कि आज भी जब घर में बेटी होती है तो खुशी कम, चेहरों पर मायूसी ज्यादा दिखाई देती है, उस पर अगर बेटी दिव्यांग हो तो परिवार उसे बोझ समझने लगता है। शुक्र है कि उत्तरकाशी के नगाण में रहने वाली कल्पना के साथ ऐसा नहीं हुआ। बचपन से ही दिव्यांग कल्पना को उनके पिता ने खूब लाड़ दिया, बेटी को आगे बढ़ने का हौसला दिया, पिता से मिली हिम्मत की बदौलत कल्पना ने ना सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि आज वो अपने गांव की प्रधान बन ग्रामीणों के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी अच्छी तरह निभा रही हैं। उत्तरकाशी जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है नगाण, इस गांव का प्रतिनिधित्व 23 साल की कल्पना चौहान करती हैं। कल्पना की कहानी सचमुच प्रेरणा देने वाली है। बचपन में गलत टीका लगने की वजह से कल्पना बाएं हाथ और पैर से दिव्यांग हो गईं थीं, तब वो सिर्फ 18 महीने की थीं।
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दिव्यांग कल्पना को देखकर हर कोई अफसोस जताता था, पर कल्पना के पिता सकल चौहान ने ऐसे लोगों को जवाब देने की ठान ली थी। उन्होंने दिन-रात एक कर बेटी की पढ़ाई पूरी कराई। कल्पना ने स्कूली पढ़ाई के बाद पॉलिटेक्निक में डिप्लोमा किया। पिता चाहते थे कि वो गांव की प्रधान बने। इसके लिए पिता-बेटी ने मिलकर मेहनत की, इलेक्शन की तैयारी में जुटे, पर गांव का प्रधान बनना इतना आसान ना था। कल्पना चुनाव में खड़ी हुईं तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की, पर कल्पना ने चुनाव में जीत हासिल कर सबका मुंह बंद कर दिया। आज पूरा गांव कल्पना की मिसाल देता है। कल्पना कहती हैं कि अपनों का साथ हो तो हम हर मुश्किल पर जीत हासिल कर सकते हैं। पिता ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। परिवार से मिले प्यार की बदौलत ही मुझे हमेशा आगे बढ़ने की हिम्मत मिली। अब मैं गांव के विकास के लिए काम करना चाहती हूं, ताकि हमारा गांव आदर्श गांव बन सके।