जय देवभूमि: इस गांव में हर घर के आगे स्वास्तिक बनाती हैं सुहागिन महिलाएं..जानिए ये अनूठी परंपरा
वॉट्सएप-फेसबुक पर निमंत्रण देने वाले लोगों को पहाड़ के भेटा गांव से काफी कुछ सीखने की जरूरत है...
Jan 25 2020 2:02PM, Writer:कोमल नेगी
उत्तराखंड के हर क्षेत्र में अलग बोली-भाषा और संस्कृति के दर्शन होते हैं। किसी एक राज्य में अलग-अलग परंपराओं के दर्शन करने हों तो उत्तराखंड से बेहतर कोई जगह नहीं। बदलते वक्त के साथ पुराने रिवाजों पर आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा है, लेकिन फिर भी पहाड़ के दूरस्थ गांव आज भी संस्कृति और परंपराओं को सहेजने की जद्दोजहद में जुटे हैं। एक ऐसी ही परंपरा को बचाने का प्रयास पिथौरागढ़ के गरुड़ में हो रहा है। जहां क्षेत्र के भेटा गांव में निमंत्रण देने के लिए अनोखी परंपरा निभाई जाती है। गांव-परिवार में शुभ कार्य होने पर गांव की सुहागिन महिलाएं अपने पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर सगे संबंधियों और ग्रामीणों को निमंत्रण देने जाती हैं। उनके घरों के आगे स्वास्तिक का चिह्न बनाती हैं। ये परंपरा सालों से निभाई जा रही है, जो कि रिश्तों में समरसता का आधार है।
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आज के वक्त में निमंत्रण देना एक औपचारिकता भर रह गई है। पहले शादी के कार्ड बंटते थे, अब तो लोग उसकी भी जहमत नहीं उठाते। एक वॉट्सएप मैसेज टाइप कर सबको फॉरवर्ड कर देते हैं। ऐसे वक्त में भी गरुड़-कौसानी रोड पर स्थित भेटा गांव में निमंत्रण देने के लिए प्राचीन परंपरा का निर्वहन हो रहा है। यहां निमंत्रण कार्ड से नहीं, बल्कि घर-घर जाकर दिया जाता है। गांव की सुहागिन महिलाएं पिछौड़ा और कुमाऊंनी परिधानों में सज-धजकर टीका की थाली और नारियल लेकर घर-घर जाती हैं। हर परिवार के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक का चिह्न बनाती हैं। उसके बाद परिवार को निमंत्रण दिया जाता है। भेटा गांव में लोहुमी जाति के लोग रहते हैं। गांव में निमंत्रण की परंपरा कत्यूरी शासनकाल से चली आ रही है। कत्यूर घाटी में राजाओं का स्वागत ऐसे ही होता था, जिसने बाद में परंपरा का रूप ले लिया। भेटा गांव में ये परंपरा आज भी निभाई जा रही है।