उत्तराखंड के बुग्याल बचाने की शानदार पहल, भारत में पहली बार इस्तेमाल हुई ये तकनीक
भारत मे पहली बार बुग्यालों ( हरी घास से भरपूर) के संरक्षण की अनोखी तकनीक उत्तरकाशी में अपनाई गई। उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में शुरू हुई बुग्याल के संरक्षण की इको फ्रेंडली तकनीक बेहद कमाल की है-
Jun 14 2020 1:54PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
हिमालय में फैला हुआ हरी और मखमली घास एवं औषधीय पौधों से भरा मैदान जिसको बुग्याल कहते हैं, उसके संरक्षण के लिए उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक अनोखा प्रयोग किया गया है। बता दें कि उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिम्बर रेखा समाप्त हो जाती है वहां से यह हरे-भरे मैदान आरंभ होना शुरू हो जाते हैं। इन्हीं मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। इन्हीं के संरक्षण के लिए उत्तरकाशी जिले में एक अनोखा प्रयोग हुआ है। यह शुरुआत हुई है समुद्रतल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल से। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किमी दूर दयारा बुग्याल 30 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां तकरीबन 600 मीटर क्षेत्र में जूट एवं नारियल के रेशों से जाल तैयार किया गया है। पिरूल (चीड़ के पत्तों) के चेक डैम बंडल और बांस के खूंट से ट्रीटमेंट किया गया है। जाल के बीच मे बुग्याल प्रजाति का रोपण भी किया गया है। उत्तरकाशी के वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी संदीप कुमार का कहना है कि बुग्यालों का इस तरह तकनीक से संरक्षण पहली बार हो रहा है। यह तकनीक पूरी तरह से इकोफ्रेंडली है। इसके संरक्षण के लिए प्रशासन भी काफी प्रयास कर रहा है।
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ऐसा इसलिए क्योंकि बीते कुछ वर्षों से प्राकृतिक और मानवीय कारणों के हस्तक्षेप के चलते बुग्यालों में भूस्खलन काफी तीव्रता से हो रहा है। इसी के साथ उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल के अनुसार कमजोर भौगोलिक गठन, भूमि संरचना, अधिक बरसात और बादल फटने जैसी प्राकृतिक कारणों के साथ बुग्याल क्षेत्र में मिट्टी के कटाव के कई मानवीय कारण भी शामिल हैं। मानवों का हस्तेक्षप भी मिट्टी के कटाव का अहम कारण है। जिस कारण उनके अस्तित्व के ऊपर खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए बुग्यालों के संरक्षण के ऊपर सरकार अधिक ध्यान दे रही है। उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में संरक्षण की यह तकनीक बेहद अनोखी है। इसके लिस जूट एवं नारियल के रेशों से तैयार हुए केयर नेट देहरादून से मंगवाए गए थे। वहीं चेक डैम बनाने के लिए पिरूल सिलक्यारा से लाई गई। कोटद्वार से बांस के खूंटे मंगवाए गए। जिसके बाद प्रोसेस शुरू हुई। डीएफओ संदीप कुमार बताते ने बताया कि बुग्याल के ट्रीटमेंट को लेकर विशेषज्ञों से सलाह ली गई ताकि बाद में इसे किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो। यह तकनीक भारत मे पहली बार इस्तेमाल हो रही है और पूरी तरह से बुग्यालों के लिए सेफ है।