उत्तराखंड के राजा की बेशकीमती ताम्रपत्र..बैंगलोर में मिली 319 साल पुरानी धरोहर
पुरातत्व विभाग को बैंगलोर में अल्मोड़ा जिले के राजा ज्ञानचंद द्वितीय द्वारा जारी किया गया बेशकीमती प्राचीन ताम्रपत्र मिला है जो 319 साल पुराना बताया जा रहा है-
Nov 1 2020 9:09PM, Writer:Komal Negi
उत्तराखंड से संबंधित एक बड़ी खबर सामने आ रही है।पुरातत्व विभाग को बैंगलोर में अल्मोड़ा जिले से संबंधित एक प्राचीन ताम्रपत्र मिला है जो 319 साल पुराना बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक यह ताम्रपत्र राजा ज्ञानचंद द्वितीय के समय का है। पुरातत्व विभाग के लिए इतना प्राचीन ताम्रपत्र खोजना एक बड़ी उपलब्धि है। इस ताम्रपत्र के अंदर राजा द्वारा सिमल्टिया गांव के तकरीबन 3 लोगों को 300 नाली भूमि दान में देने का जिक्र भी है। खास बात यह है कि यह ताम्रपत्र बैंगलोर में पाया गया है। यह ताम्रपत्र बैंगलोर में कैसे और किसको मिला, इसको जानने से पहले आइये संक्षिप्त से जानते कि इस ताम्रपत्र से आखिर उत्तराखंड के इतिहास का कौन सा महत्वपूर्ण पहलू जुड़ा हुआ है। आगे भी जानिए इस बारे में कुछ खास बातें
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कई सौ वर्षों पूर्व उत्तराखंड भूमि में भी बड़े-बड़े राजाओं और महाराजाओं का निवास था और यहां पर भी राजतंत्र का जोर था। उत्तराखंड के इतिहास को दर्शाती कई निशानियां अब भी मौजूद है जिन को खोजना बाकी है। उन्हीं बची हुई निशानियों में से पुरातत्व विभाग ने हाल ही में बैंगलोर में अल्मोड़ा जिले के राजा ज्ञानचंद के शासनकाल का 319 साल का पुराना एक दुर्लभ ताम्रपत्र खोजा है। इस ताम्रपत्र में राजा ज्ञान चंद्र द्वितीय द्वारा सन 1701 में अल्मोड़ा जिले के सिमल्टिया गांव के 3 लोगों को तकरीबन 300 नाली भूमि दान में देने का उल्लेख है। यह दुर्लभ ताम्र पत्र देवनागरी लिपि और कुमाऊनी बोली में लिखा गया है। यह ताम्रपत्र सिम्लटा निवासी अवकाश प्राप्त कर्नल दिव्य दर्शन पांडे के पास है जो अब बेंगलुरु में रह रहे हैं।
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क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ चंद्र सिंह चौहान ने बताया कि यह दुर्लभ ताम्रपत्र तकरीबन 319 साल पुराना है और राजा ज्ञानचंद द्वितीय ने इसको जारी किया था। राजा ज्ञानचंद का शासन काल अल्मोड़ा जिले के सिमल्टा गांव में सन 1698 से लेकर 1708 तक रहा। इसी दौरान यह ताम्रपत्र लिखा गया। इस ताम्रपत्र के अंदर अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र के सिमल्टिया गांव निवासी चक्र गिरिधर, चंदेश्वर, और जय राम को राजा ज्ञानचंद द्वारा 18 अगस्त 1701 को पूर्णिमा के दिन तीन नाली भूमि दान में देने का उल्लेख है। यह ताम्रपत्र देवनागरी लिपि में कुमाऊनी बोली के अंदर लिखा गया है। पुरातत्व अधिकारी डॉ. चौहान ने बताया कि उन्हें सहायक अधीक्षण पुराविद मनोज जोशी के माध्यम से इस दुर्लभ ताम्रपत्र के बारे में जानकारी मिली और यह ताम्रपत्र फिलहाल बेंगलुरु में ही रहेगा।