image: Story of Sher Singh Rana Retired Subedar of Haldwani

उत्तराखंड के शेर सिंह राणा: पाकिस्तानी सेना में मचा दिया था कोहराम, कई दुश्मन हुए थे ढेर

हल्द्वानी के सेवानिवृत्त सूबेदार शेर सिंह राणा को 80 वर्ष की उम्र में भी 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध की एक-एक घटना और अधिकारी कर्मचारी के नाम याद हैं।
Jan 23 2022 3:35PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

26 सितंबर 1942 को जन्मे उत्तराखंड के सपूत और हल्द्वानी के सूबेदार शेर सिंह राणा की आंखों में अब भी वैसी ही चमक है। पट्टी, तल्ली रिठागाड, थिकालना अल्मोड़ा में जन्में सेवानिवृत्त सूबेदार शेर सिंह राणा का पालीशीट टेड़ी पुलिया हल्द्वानी में रहते हैं। उनका शरीर बूढ़ा हो चला है मगर आंखों का तेज कम नहीं हुआ है। आज हम आपको उनके जीवन के बेहद खास पहलू के बारे में बताएंगे। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। 80 वर्ष की उम्र में भी उनको सब कुछ याद है। भारतीय सेना के सेवानिवृत सूबेदार शेर सिंह राणा का नाम भी उन वीर सपूतों में शामिल है जिन्होंने भारत-पाक युद्ध लड़ा और पाकिस्तान को धूल चटवाई। वे बताते हैं '' बात दिसंबर 1971 की है। हमारी प्लाटून घने जंगल में खाने के लिए खिचड़ी बना रही थी कि तभी कंपनी कमांडर आरएस खाती वहां पहुंचे और कहा, ऊंचाई वाली जगहों पर पाकिस्तान अपने टैंक स्थापित कर चुका है और कभी भी उनके ऊपर फायरिंग हो सकती है। वे पाकिस्तान के निशाने पर हैं। तभी मैंने कहा " मरना तो है ही" और फिर पूरी टुकड़ी ने कीचड़ के दलदल को पार कर पाकिस्तानी सीमा पार की जिसमें ढाई घंटा लग गया। मेरी वर्दी कीचड़ से सन चुकी थी। एक घूंट पानी पीते ही मैंने गार्नेट से ताबड़तोड़ अटैक शुरू कर दिया। पहला गार्नेट सही और दूसरा गलत जगह गिरा। तीसरे गार्नेट से एक और टैंक को मैंने ध्वस्त कर दिया।"हल्द्वानी की पालीशीट टेड़ीपुलिया निवासी 80 साल के सूबेदार शेर सिंह राणा को केवल यही किस्सा नहीं बल्कि युद्ध से संबंधित अनगिनत किस्से याद हैं। 80 वर्ष की उम्र में भी उन्हें भारत-पाक युद्ध 1965 व 1971 की एक-एक घटना और अधिकारी, कर्मचारी के नाम पता हैं। सेना तक की उनकी यात्रा कठिन थी। आगे पढ़िए

महज 12 वर्ष के थे जब उनके पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया। अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा था तो खाली हाथ दिल्ली के लिए निकल पड़े। 26 जनवरी को परेड देखने पहुंचे तो वहां पर आर्मी के जवानों को देखकर उनके मन में भी आर्मी में जाने की तीव्र इच्छा जाग गई। वर्ष 1961 में लाल किले पर भर्ती हुई और वहां से शुरू हुआ उनका आर्मी का सफर। सेना में भर्ती होने के बाद उनकी रानीखेत कुमाऊं रेजीमेंट से ट्रेनिंग हुई और वहां से वह पुंछ कश्मीर में चले गए। 1965 में भारत-पाक का युद्ध हुआ। युद्ध में उन्होंने डटकर दुश्मनों का सामना किया। 1971 में उनको एक बार फिर से भारत-पाक युद्ध में लड़ने का मौका प्राप्त हुआ। कंपनी कमांडर आरएस खाती ने उन्हें टैंक उड़ाने का काम सौंप दिया। उनके पास ब्लास्ट मशीन गन व चार गार्नेट थे। युद्ध के दौरान वह जख्मी होकर बेहोश भी हुए। तीन दिसंबर से 19 दिसंबर, 19 दिन तक उन्होंने सैकड़ों पाकिस्तानियों को सरेंडर कराया और कई दुश्मनों को मार गिराया। शेर सिंह राणा वर्ष 1961 में सिपाही पद पर भर्ती हुए। 1964 में वे लांसनायक बने। 1965 में स्पेशल प्रमोशन से पेड लांस नायक, 1967 में नायक, 1967 में लांस हवलदार, 1972 में हवलदार बने। फिर नायब सूबेदार और फिर सूबेदार से सेवानिवृत्त हुए। उनके साहस को देखकर उनका नाम वीर चक्र के लिए भेजा गया। मार्च 1972 में राष्ट्रपति वीवी गिरी ने वीर चक्र पदक से नवाजा जा चुका है।


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