बागेश्वर की पहली महिला टीचर देवकी धपोला, 88 साल की उम्र में भी जला रही हैं शिक्षा की अलख
सच कहें तो देवकी धपोला जैसी महिलाएं ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं। पढ़िए उनकी बेमिसाल कहानी
Mar 9 2022 6:56PM, Writer:कोमल नेगी
सेवा भाव और दूसरों के लिए बिना स्वार्थ कुछ करने का जज्बा ऐसी शक्ति है, जिससे बड़ी से बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है। अब बागेश्वर की शिक्षिका देवकी धपोला को ही देख लें। 88 साल की होने के बावजूद देवकी आज भी बेटियों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही हैं। उन्हें आगे बढ़ने की हिम्मत दे रही हैं। सच कहें तो देवकी धपोला जैसी महिलाएं ही महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं। वह बागेश्वर जिले की पहली शिक्षिका होने का गौरव हासिल कर चुकी हैं। शिक्षा के क्षेत्र में रहते हुए उन्होंने अपनी बेटियों को भी बेहतर शिक्षा हासिल करने में मदद की। आज उनकी बेटियां शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में सेवाएं दे रही हैं। देवकी धपोला धराड़ी के कांडा क्षेत्र की रहने वाली हैं। उनका जन्म 8 जुलाई 1935 को हुआ था। ये वह दौर था, जब लोग बेटियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया करते थे, लेकिन देवकी बचपन से ही पढ़ना चाहती थी। उनके पिता सूबेदार और माता गृहणी थी। बेटी की जिद को देखते हुए उन्होंने देवकी का एडमिशन गांव के स्कूल में करा दिया। जहां से उन्होंने पांचवी और हाईस्कूल की शिक्षा हासिल की। आगे पढ़िए
17 साल की आयु में देवकी की शादी हो गई, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनका जज्बा कम नहीं हुआ। देवकी खुशकिस्मत थीं, क्योंकि पति ने भी उनका साथ दिया और उनकी मदद से देवकी ने पहले बीटीसी और फिर बाद में बीएड किया। जिले की प्रथम महिला शिक्षिका देवकी बताती हैं कि 1 अगस्त 1951 को उन्हें पंचोड़ा के प्राथमिक स्कूल में नियुक्ति मिली। तब उन्हें सैलरी के तौर पर 47 रुपये प्रतिमाह मिला करते थे। देवकी के परिवार में पांच बच्चे हैं। बड़ा बेटा कर्नल और दूसरा बेटा कमांटेंड सीआरपीएफ के पद से सेवानिवृत्त हैं। तीसरा बेटा कंपाउंडर है। देवकी की एक बेटी शिक्षिका और दूसरी सफल गृहणी है। देवकी धपोला कहती हैं कि आज के आधुनिक युग में बेटियां बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ऐसे वक्त में लोगों को लड़के और लड़की में भेद नहीं करना चाहिए। जीवन के 88 बसंत देख चुकी देवकी धपोला आज भी क्षेत्र की बहन-बेटियों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही हैं। उन्हें आगे बढ़ने की राह दिखा रही हैं।