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केदारनाथ में अब तक 400 घोड़े-खच्चरों की मौत? असहनीय दर्द से दम तोड़ रहे हैं बेजुबान

केदारनाथ में 23 दिन में हो चुकी है 400 से अधिक घोड़े-खच्चरों की मौत, क्या बेजुबान जानवरों की जान की कीमत कुछ नहीं?
May 31 2022 12:59PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

"तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है" अदम गोंडवी की यह पंक्तियां बिल्कुल फिट बैठती हैं इस खबर पर। केदारनाथ यानी शिव की नगरी, दूरदराज से लोग केदारनाथ दर्शन करने आ रहे हैं।

400 mules died in 23 days in Kedarnath

श्रद्धालुओं के लिए सरकार ने सभी व्यवस्था की है। सरकार, पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन द्वारा किए गए दावों के अनुसार केदारनाथ में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं मगर जमीन पर हकीकत कुछ और ही बयां करती है। जमीन पर हकीकत देखेंगे तो उनमें तमाम बेजुबान घोड़े और खच्चरों की लाश केदारनाथ में दिखाई देंगी जो कि यहां वहां पड़ी हुई हैं। जिनके लिए न उनके मालिक सोचते हैं और ना ही सरकार या कोई और प्रशासन। वह घोड़े और खच्चर रोजाना केदारनाथ की चढ़ाई करते हैं, बोझा होते हैं, क्षमता से अधिक कार्य करते हैं और उसके बाद ठीक से खाना और पानी ना मिलने के कारण मर जाते हैं। मगर इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। वो क्या है ना कि केदारनाथ में केवल और केवल श्रद्धालुओं की फिक्र होती है क्योंकि जानवरों की जान की कोई कीमत नहीं है। केदारनाथ जैसे पवित्र धार्मिक स्थल को कारोबारियों ने चंद पैसे कमाने के लिए धंधा बना दिया है। अब यहां पर जानवरों की जान के साथ भी व्यापार किया जा रहा है आंकड़े सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। जागरण की रिपोर्ट कहती है कि अब तक महज 23 दिन में 400 से अधिक घोड़ा-खच्चर की मौत हो चुकी है। जांच में पता चला है कि घोड़ा-खच्चर की मौत तीव्र पेट दर्द (शूल), पानी की कमी, बर्फीला पानी पीने और अधिक कार्य लिए जाने से हो रही है। कपाट खुलने के बाद से अब तक महज 23 दिन में 400 से अधिक घोड़ा-खच्चर की मौत हो चुकी है। दरअसल, उच्च हिमालयी क्षेत्र में घोड़ा-खच्चर को सिर्फ गर्म पानी ही पिलाया जाता है, लेकिन इस बार पैदल मार्ग के पड़ावों पर गीजर की व्यवस्था न होने से उनके लिए गर्म पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा। इससे उनके शरीर में पानी की कमी होने से घोड़ा-खच्चर मौत के मुंह में चले जा रहे हैं। घोड़ा-खच्चर बिना पानी के ही या थोड़ा-बहुत बर्फीला पानी पीकर इतना लंबा सफर तय कर रहे हैं। इससे शरीर में पानी की कमी व असहनीय दर्द उनकी मौत का कारण बन रहा है। जबकि, घोड़ा-खच्चर को रोजाना कम से कम 30 लीटर पानी पिलाया जाना जरूरी है

सरकार के लिए और जिला प्रशासन के लिए यह बेहद शर्म की बात है कि केदारनाथ जैसे पवित्र स्थल पर दूसरों का बोझा उठाने वाले मासूम और बेजुबान जानवरों की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है ना उनके लिए गर्म पानी की व्यवस्था है और ना ही पौष्टिक आहार की, न नियमित स्वास्थ्य जांच की। केदारनाथ पैदल मार्ग पर प्रतिदिन पांच से छह हजार घोड़ा-खच्चर की आवाजाही होती है। लगभग 40 प्रतिशत श्रद्धालु घोड़ा-खच्चर से ही केदारनाथ पहुंचते हैं। इसके अलावा सामान ढोने का कार्य भी घोड़ा-खच्चर से ही होता है। इस वर्ष यात्रा के लिए 8200 घोड़ा-खच्चर का पंजीकरण हुआ है। जबकि, बिना पंजीकरण के भी हजारों घोड़ा-खच्चर पैदल मार्ग पर आवाजाही कर रहे हैं। और इन घोड़ा-खच्चर की देखरेख के लिए पशुपालन विभाग की ओर से केवल दो पशु चिकित्सक गौरीकुंड व एक सोनप्रयाग में तैनात किया गया है। इससे यह तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि घोड़ा-खच्चर की कैसी देखरेख हो रही होगी। पूर्व में रुद्रप्रयाग जिले में मुख्य पशु चिकित्साधिकारी के पद पर तैनात रहे डा. रमेश चंद्र नितवाल कहते हैं कि गर्म पानी की व्यवस्था न होने के कारण पैदल मार्ग पर संचालक ग्लेशियर का पानी ही घोड़ा-खच्चर को पिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन घोड़े और खच्चर केवल गर्म पानी ही पीते हैं और गर्म पानी उपलब्ध ना होने की वजह से उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है। वहीं, घोड़ा-खच्चर के खाने के लिए हरी घास भी उपलब्ध नहीं है, जिससे उन्हें भूसा, चना व गुड़ दिया जाता है। इससे उनकी आंतों में गांठ बन जाती है और मूत्र भी बंद हो जाता है। यही घोड़ा-खच्चर की मौत की मुख्य वजह है। रुद्रप्रयाग के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा. आशीष रावत का कहना है कि गौरीकुंड समेत यात्रा मार्ग पर घोड़ा-खच्चर की नियमित जांच हो रही है। पेट फूलने से फेफड़े सीधे प्रभावित होते हैं और सांस लेने में दिक्कत आती है। इसे देखते हुए पशुपालन विभाग की ओर से पर्याप्त मात्रा में दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं।


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