गढ़वाल: आपदा ने छीन लिए सिद्धार्थ और वंशिका के माता-पिता, गहरे सदमे में दोनों भाई-बहन
सिद्धार्थ और वंशिका को अब तक यकीन नहीं हो रहा कि जिंदगी का कठिन सफर अब उन्हें अकेले ही तय करना होगा। जिस घर में उन्होंने अपना बचपन बिताया था, वहां अब मलबे के ढेर के अलावा कुछ नहीं बचा।
Aug 22 2022 5:23PM, Writer:कोमल नेगी
शुक्रवार को आई आपदा कई परिवारों को अपनों से बिछड़ने का गहरा गम दे गई।
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इस दौरान टिहरी में भी बादल फटने की घटना हुई, जिसमें ग्वाड़ गांव पट्टी सकलाना के दंपति की मौत हो गई। एक ही झटके में दो मासूम भाई-बहन के सिर से माता-पिता का साया उठ गया। दोनों बच्चे गहरे सदमे में हैं। उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि अब जिंदगी का कठिन सफर उन्हें अकेले ही तय करना होगा। जिस घर में उन्होंने अपना बचपन बिताया था, वहां अब मलबे के ढेर के अलावा कुछ नहीं बचा। ग्वाड़ गांव में रहने वाले राजेंद्र सिंह राणा और उनकी पत्नी सुनीता राणा गांव में खेतीबाड़ी करते थे। उनका जीवन भले ही अभाव में गुजर रहा था, लेकिन बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए उन्होंने दोनों बच्चों को देहरादून भेजा हुआ था। बेटा सिद्धार्थ 14 साल का है, जबकि बेटी वंशिका 12 साल की है। सिद्धार्थ ने रोते हुए बताया कि रक्षाबंधन पर उनकी मां देहरादून आई थीं।
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वो कहकर गई थीं कि मेहनत से पढ़ाई-लिखाई करना और बड़ा आदमी बनना। मम्मी ने कहा था कि गांव आने-जाने का रास्ता खराब है इसलिए वह खुद ही रक्षाबंधन पर देहरादून आईं। सिद्धार्थ के नाना त्रिलोक सिंह पंवार ने बताया कि गांव में अच्छे स्कूल नहीं हैं, इसलिए दोनों बच्चों को पिछले चार साल से देहरादून भेजा हुआ था। शनिवार से दोनों बच्चे गुमसुम हैं और उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि अब माता-पिता जीवित नहीं हैं। बता दें कि शुक्रवार रात प्राकृतिक आपदा से आए मलबे में ग्वाड़ गांव में कई लोगों के मकान दब गए थे। जिसमें दबकर राजेंद्र सिंह राणा और उनकी पत्नी सुनीता राणा की भी मौत हो गई थी। शनिवार को दोनों के शव को बचाव दल ने मलबे से निकाला था। रविवार दोपहर दोनों के शवों को ग्रामीण पांच किलोमीटर पैदल चलकर मालदेवता तक लाए। उसके बाद शव अंतिम संस्कार के लिए हरिद्वार ले जाए गए। अचानक आई आपदा से ग्रामीण अब तक गहरे सदमे में हैं।