उत्तराखंड शहीद राजेन्द्र: मजदूर पिता ने मेहनत से बनाया था फौजी, घर में थी शादी की तैयारी
उत्तराखंड के सपूत राजेन्द्र बुंगला के घर में शादी की तैयारियां हो रही थीं। मां घर में बहू लाने वाली थी लेकिन वो शहीद हो गया।
Oct 29 2018 11:26AM, Writer:कपिल
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के बडेना (बुंगली) गांव में अभी भी मातम का माहौल है। इस गांव के सपूत राजेन्द्र बुंगला हाल ही में शहीद हुए हैं। सलाम उस पिता को भी है, जिन्होंने खुद मेहनत मजदूरी की लेकिन पैसे बचाकर अपने घर के इकलौते बेटे को सेना में भर्ती होने लायक बनाया। फौज में भर्ती होने के वक्त तक राजेंद्र बुंगला ने बेहद गरीबी में अपने दिन बिताए थे। पिछली बार जब राजेन्द्र छुट्टी लेकर घर आए थे तो उनकी जिद पर ही पिता ने अपना घोड़ा बेचा था। परिवार का खर्च चलाने के लिए वो घोड़ा चलाते थे। पिता चन्द्र सिंह की माली हालत भी कभी ठीक नहीं रही। घोड़े पर दुकाने से राशन ढो-ढोकर उन्होंने बेटे राजेन्द्र और तीनों बेटियों को पढ़ाया। इस मजदूरी में कभी इतना पैसा भी नहीं मिला कि चारों बच्चों की जरूरतें पूरा कर पाएं।
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जब बेटा फौज में भर्ती हुआ, तो माता-पिता की आंखें नए सपने बुनने लगी थीं। राजेन्द्र जब छुट्टी पर घर आय़ा था, तो अपने पिता से कहा था कि ‘अब बुढ़ापे में घोड़े चलाने की जरूरत नहीं है। मैं कमाने लगा हूं।’ राजेन्द्र के कहने पर पिता चन्द्र सिंह ने घोड़ा बेचा, तो राहत महसूस हुई थी। बुढ़ापे का सफर अब आसान लगने लगा था। उधर राजेन्द्र ने घर के पुराने मकान की जगह नया मकान भी बनवाना शुरू कर दिया था। सब ठीक होने लगा तो मां ने भी घर में बहू लाने के सपने देखे थे। इस बार दिवाली में राजेन्द्र छट्टी पर घर आने वाले थे। लेकिन जब बेटा तिरंगे में लिपटा हुआ घर आया तो मा-पिता के सपनों पर मानों बज्रपात हो गया। सोचा ही नहीं था कि काल के क्रूर हाथ उनसे उनके सपने ही छीन लेंगे।
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जीवन भर बेटे के लिए बड़े बड़े बोझ उठाने वाले पिता टूटे से नजर आए। तीनों बहने अपने भाई के जाने से सन्न हैं। एक परिवार के लिए दिवाली का त्यौहार खुशियां नहीं बल्कि असहनीय दुख लेकर आया। आपको बता दें कि राजेंद्र सिंह बुंगला जाट रेजीमेंट (टीए) में सिपाही थे। वो साल 2015 में सेना भर्ती हुए थे। कश्मीर में पत्थरबाजों के हमले में राजेन्द्र शहीद हो गए। ऐसा देश में पहली बार हुआ है, जब पत्थरबाजों के हमले में सेना का कोई जवान शहीद हुआ है। सवाल उठ रहे हैं कि पत्थरबाजों के लिए सहानूभूति रखने वाले लोग अब क्यों कुछ नहीं बोल रहे ? उधर जनरल बिपिन रावत भी साफ कर चुके हैं कि पत्थरबाजों को बख्शा नहीं जाएगा और पाकिस्तान की कोई भी चाल कामयाब नहीं होगी।