पहाड़ की इस महिला ने पिरूल से शुरू किया बिजनेस, मिला बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट अवॉर्ड
ससुराल पहुंचने पर मंजू (Manju rautela shah) ने देखा कि गांव में हर जगह पिरुल यानि Pine Needle बिखरी पड़ी हैं। इसका कोई इस्तेमाल भी नहीं होता। यहीं उनके दिमाग में एक कमाल का आइडिया आया और उन्होंने पिरुल इकट्ठा करना शुरू कर दिया...आगे पढ़िए पूरी खबर
Apr 26 2020 4:19PM, Writer:कोमल नेगी
पहाड़ की बेटियां अपनी मेहनत और हौसले से पहाड़ में रहकर तरक्की और विकास के रास्ते तैयार कर रही हैं। ऐसी ही होनहार बेटी हैं अल्मोड़ा की मंजू रौतेला शाह (Manju rautela shah) । मंजू रौतेला बेकार समझी जाने वाली चीजों में जान फूंकने का काम करती हैं। वो पिरुल से कलाकृतियां बनाती हैं। साल 2019 में उन्हें कोलकाता में बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट अवॉर्ड से नवाजा गया। ये अवॉर्ड उन्हें इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल की तरफ से दिया गया। चलिए अब आपको मंजू रौतेला शाह के सफर के बारे में बताते हैं। साल 2009 में मंजू रौतेला का विवाह मनीष कुमार साह के साथ हुआ। वो पति के साथ द्वाराहाट के हाट गांव में रहने लगीं। यहां आकर उन्होंने देखा कि गांव में जहां देखो वहां पिरुल यानि Pine Needle बिखरी पड़ी हैं। इसका कोई इस्तेमाल भी नहीं होता। यहीं उनके दिमाग में एक आइडिया आया और उन्होंने पिरुल इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इससे फूलदान, टोकरी, कटोरियां और साजो-सज्जा का सामान बनाने लगीं। आगे पढ़िए...
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: लॉकडाउन में पहाड़ लौटे 60 हजार लोग, अब यहीं रुक जाना चाहते हैं
थोड़े टाइम बाद उन्हें ताड़ीखेत के राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में प्रयोगशाला सहायक के पद पर नियुक्ति मिली, लेकिन मंजू ने अपने पैशन से दूरी नहीं बनाई। वो स्कूल की शिक्षिकाओं और छात्राओं को भी मोटिवेट करने लगीं और उन्हें पिरुल से सामान बनाने की ट्रेनिंग दी। इस पहल के लिए मंजू को शिक्षा में शून्य निवेश नवाचार के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। मंजू (Manju rautela shah) की कोशिश की बदौलत गांव में स्वरोजगार का नया जरिया इजाद हुआ। मंजू ने पिरुल से उत्पाद तैयार करने की ट्रेनिंग जापानी प्रशिक्षक से ली है। उनके उत्पादों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, साथ ही सराहना भी। पिरुल से बनी टोकरियां प्लास्टिक से बनी टोकरियों और दूसरे सामान का बेहतर विकल्प बन सकती हैं। इनका इस्तेमाल कर हम प्लास्टिक और पर्यावरण प्रदूषण से छुटकारा पा सकते हैं। अब मंजू ग्रामीण महिलाओं की मदद से इस काम को और आगे बढ़ाना चाहती हैं, ताकि पिरुल महिलाओं की आर्थिकी का मजबूत आधार बन सके।