image: Uttarakhand state agitator Trepan Singh Chauhan dies

उत्तराखंड के लिए दुखद खबर, नहीं रहे राज्य आंदोलनकारी त्रेपन सिंह चौहान

त्रेपन एक विचारवान, संघर्षशील, उत्कट जिजीविषा वाले साथी थे। वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता चारु तिवारी की फेसबुक वॉल से साभार
Aug 13 2020 2:47PM, Writer:Komal Negi

आज सुबह बहुत दुखद खबर सुनी। हमारे बहुत अनन्य साथी भाई त्रेपन सिंह चौहान नहीं रहे। हम सबके लिये यह अपूरणीय और व्यक्तिगत क्षति है। लंबी और लाइलाज बीमारी से उनका देहरादून में निधन हो गया। त्रेपन एक विचारवान, संघर्षशील, उत्कट जिजीविषा वाले साथी थे। उनका जाना हमारे बीच के एक शक्तिपुंज का अवसान है। उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
हमारे बहुत पुराने साथी थे त्रेपन सिंह चौहान। हमारा उनका आंदोलनों से रिश्ता है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान हमारी निकटता बढ़ी। विकट जिजीविषा और जनसरोकारों के लिये समर्पित त्रेपन सिंह चौहान ने जो रचा भी है उसमें आम लोगों के संघर्ष और उससे लड़ने की प्रेरणा है। फलेण्डा परियोजना के खिलाफ आंदोलन के समय हमारी घनिष्ठता और बढ़ी। मूल रूप में केपार्स, बासर टिहरी के रहने वाले त्रेपन चमियाला में रहते थे, लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के बाद लंबे समय से देहरादून में थे। उन्होंने 'भाग की फांस', 'सृजन नवयुग', 'यमुना' और 'हे ब्वारि' उपन्यास लिखे। 'उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक सच यह भी' नाम से विमर्श लिखा। 'सारी दुनिया मांगेंगे' नाम से जनगीतों का संग्रह निकाला। उनके कई लेख कन्नड में प्रकाशित हुये।

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हिन्दी साहित्य में त्रेपन सिंह चौहान को सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मिली एक कहानी पर आधारित दो उपन्यासों पर- 'यमुना' और 'हे ब्वारि'। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के आलोक में लिखे गये इन दोनों उपन्यासों में यहां के लोगों की आकांक्षाओं, उत्कंठाओं, संघर्ष, दमन, उम्मीद, संवेदनाओं और निराशा को समझा जा सकता है। यह आंदोलन में शामिल रही यमुना की कहानी जरूर है, लेकिन महिलाओं के संघर्षों का एक दस्तावेज भी है। इसे सबको पढ़ना चाहिए।
हम त्रेपन सिंह चौहान की जिजीविषा के हमेशा से कायल रहे। जब वे युवा थे समाज की बेहतरी के लिए संघर्ष किया। लंबे समय से एक ऐसी बीमारी से जंग लड़ते रहे, जिसने उन्हें बिस्तर पर रहने को मजबूर कर दिया है। वे बिस्तर से उठ नहीं सकते थे। उनके शरीर का कोई अंग काम नहीं करता। बोल भी नहीं सकते थे। उनकी चेतना और जिजीविषा को इस बात से समझा जा सकता है कि वे अंतिम समय तक कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से जुड़े एक साफ्टवेयर से अपनी आंखों की पुतली से संकेत कर लिखते थे। वे एक उपन्यास पर काम कर रहे थे। ऐसे शख्स को सलाम। अलविदा।
वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता चारु तिवारी की फेसबुक वॉल से साभार


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