उत्तराखंड की हेमा देवी को नमन..मृत्यु से पहले मानवता के लिए किया देह दान
मेडिकल रिसर्च के लिए देह दान करने वाली हेमा देवी दूसरे लोगों के लिए मिसाल बन गईं। मृत्यु से पूर्व ही हेमा ने देह दान करने का फॉर्म भर दिया था। आगे पढ़िए पूरी खबर
Oct 23 2020 3:53PM, Writer:Komal Negi
देहदान। एक ऐसा विषय जिस पर आज भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। मरने के बाद शरीर खाक में मिल जाता है, किसी के काम नहीं आ पाता। वहीं, देशभर के मेडिकल स्टूडेंट्स पढ़ाई के दौरान बॉडी न मिल पाने की समस्या से जूझते रहते हैं। अगर यही शरीर हम दान कर दें, तो मरने के बाद भी हम समाज को बेहतर डॉक्टर देने में मददगार साबित हो सकते हैं। काशीपुर की हेमा देवी इस बात को समझती थीं। तभी तो मरने से पहले उन्होंने देह दान करने का फैसला किया। कुछ दिन पहले हेमा देवी का निधन हो गया। तब उनके परिजनों ने हेमा देवी की इच्छानुसार उनका पार्थिव शरीर तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी मुरादाबाद से आई टीम को सौंप दिया। मेडिकल रिसर्च के लिए देह दान करने वाली हेमा देवी दूसरे लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। हेमा उत्तराखंड के बाजपुर के भौना इस्लामनगर क्षेत्र में रहती थीं। 80 साल की होने के बाद भी हेमा समाज की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने मरणोपरांत देह दान करने की इच्छा जताई थी। अपनी मृत्यु से पूर्व ही हेमा देवी ने देह दान करने का फॉर्म भर दिया था। वो डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी हुई थीं और भौना कॉलोनी में अपनी बेटी पार्वती के यहां रहती थीं। आगे पढ़िए
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कुछ दिन पहले हेमा देवी की मौत हो गई। तब परिजनों ने उनकी इच्छानुसार पार्थिव देह को मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर दिया। मुरादाबाद के तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी से आई मेडिकल टीम को परिजनों ने उनका पार्थिव शरीर सौंपा। शव को एंबुलेंस में रखते वक्त उनकी बेटी बिलख-बिलख कर रो पड़ी। इस दौरान क्षेत्र की अन्य महिलाओं और हेमा की बेटी ने पार्थिव देह को कंधा देकर सामाजिक रूढ़ियों को आईना भी दिखाया। इस तरह हेमा देवी मरने के बाद भी समाज की भलाई में योगदान दे गईं। अब उनका पार्थिव शरीर मेडिकल रिसर्च में काम आएगा। दरअसल मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स को एनाटोमी की पढ़ाई के लिए बॉडी की जरूरत होती है। एनाटोमी एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों का विषय होता है। जिसमें उनको बॉडी के पार्ट्स के बारे में बारीकी से समझाया जाता है। इस वक्त अंगदान के लिए कई अवेयरनेस प्रोग्राम चल रहे हैं, बावजूद इसके आज भी बहुत कम लोग ही देह दान करने का साहस जुटा पाते हैं।