जय देवभूमि: बाबा तुंगनाथ के भक्तों के लिए शुभ संदेश, ASI करेगा संरक्षण..जानिए अब क्या होगा
एक हजार साल पुराने तुंगनाथ मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। अब इस मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई उठाएगा।
Nov 10 2020 11:17AM, Writer:Komal Negi
प्राचीन तुंगनाथ मंदिर। उत्तराखंड के हिमालयी अंचल में स्थित इस मंदिर का सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं ऐतिहासिक महत्व भी है। एक हजार साल पुराने इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। अब इस मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई उठाएगा। पुरातत्विदों की टीम मंदिर की बनावट, स्थापित विग्रहों की प्राचीनता, निर्माण शैली और बनाने में इस्तेमाल पत्थरों के प्रकार आदि का अध्ययन करेगी। एएसआई ने मंदिर के संरक्षण की स्वीकृति दे दी है। इसी के साथ मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा भी मिल जाएगा। एएसआई की टीम को जल्द तुंगनाथ रवाना किया जाएगा। टीम यहां करीब 10 दिन रहेगी और मंदिर का बारीकी से निरीक्षण करेगी। मंदिर के हर एक पत्थर की ड्राइंग तैयार की जाएगी। ताकी बाद में उन पत्थरों को मूल रूप में ही स्थापित किया जा सके। निर्माण कार्य में नए पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। एएसआई का देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय मंदिर की दीवारों पर उभरी दरारों को भरने के लिए प्रस्ताव तैयार कर रहा है। सैकड़ों साल पुराने मंदिर के मंडप की स्थिति खस्ताहाल है।
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दीवारों पर दरारें हैं। पत्थर भी अपनी जगह से हिल गए हैं। एक हजार साल का वक्त कम नहीं होता। बदलते वक्त के साथ मंडप की नींव भी कमजोर पड़ गई है। अब मंदिर के संरक्षण का कार्य एएसआई कराएगा। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। एक महीने के भीतर प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को भेज दिया जाएगा। अगले साल अप्रैल से मंदिर के संरक्षण का काम शुरू कर दिया जाएगा। प्राचीन तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर की लिस्ट में शामिल करने के लिए राज्य सरकार लंबे समय से प्रयासरत है। साल 2017 में राज्य सरकार ने इसे लेकर केंद्र को प्रस्ताव भेजा था। तब साल 2018 में पुरातत्वविदों ने मंदिर का निरीक्षण किया। उन्होंने मंदिर की स्थिति में सुधार की जरूरत बताई थी। अब केंद्र ने मरम्मत संबंधी कार्यों की स्वीकृति दे दी है। इसके लिए एएसआई को प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है। रुद्रप्रयाग में स्थित तुंगनाथ मंदिर पंच केदार में से एक है। इसे तृतीय केदार माना गया है। सैकड़ों साल पुराना ये मंदिर समुद्रतल से 3460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।