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उत्तराखंड: ‘बंशी’ की तान बेसुरा गान, शब्दों को भी थोड़ा ‘धर’ लो..पढ़िए इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

काश कि ऐसी प्रतिस्पर्द्धा जनहित के लिए भी होती..पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार एवं एक्टिविस्ट इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग
Jan 6 2021 2:56PM, Writer:Komal Negi

यह कमाल है भाई,बुढ़ापा भी गाली है ! और गाली की तरह भी वो इस्तेमाल कर रहे हैं,जो खुद भी उसी अवस्था को प्राप्त हैं ! नवजात तो वे भी नहीं,लौंडे-लपाड़े भी नहीं रहे गए,लौंडे-लपाड़े होते तो प्रदेश अध्यक्ष नहीं आईटी सेल के मुखिया बनाए जाते,जम के गाली-गलौच करते ! जो कल वे बोले वो तो उनके आईटी सेल में निरामिष बात है,फूल समान ! वो तो सब डॉट-डॉट-बीप-बीप वाली ही भाषा बोलते हैं ! उम्र होती भगत जी की तो उन्ही में भर्ती किए जाते. आईटी सेल का जमाना देर से आया या भगत जी दुनिया में पहले आ गए, पता नहीं ! जो भी हुआ,वहाँ भर्ती होने से पहले वो भी वैसे ही ओवरएज हो गए,जैसे भगत जी की लाखों रोजगार की कागजी घोषणा के बावजूद नौकरी का इंतजार करते-करते बेरोजगार ओवरएज हो जा रहे हों. बेरोजगारों के लिए तो कोई रास्ता नहीं है पर भगत जी की जुबान के फिसलने का सिलसिला यूं जारी रहे तो वे आईटी सेल के मार्गदर्शक मंडल में तो भर्ती किए ही जा सकते हैं..आगे पढ़िए

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आईटी सेल के पास तो केवल डॉट-डॉट-बीप-बीप है,भगत जी के पास तो बरसों-बरस दशरथ का अभिनय करते हुए रावण के सानिध्य में हासिल दानवी भाव-भंगिमा भी है ! वैसे भगत जी,आईटी सेल वाले, सब धर्म की ठेकेदार पार्टी में हैं पर जिस धर्म का वो बखूबी निर्वहन करते हैं,वो है- गाली-गलौच धर्म ! क्या मोदी जी के “स्वच्छ भारत” अभियान में कलुषित जुबानों की सफाई का कोई प्रावधान न होगा ? और देखिये तो गाली-गलौच किनकी खातिर की जा रही है ? कुछ दागी-बागी हैं,उनकी खातिर ! ये ऐसे पंछी हैं,जो सत्ता के घोसले में ही बसेरा करना चाहते हैं ! एक खास मौसम में प्रवासी पंछी,भारत को चले आते हैं और मौसम बदलने पर पुनः लौट आते हैं. वैसे ही कुछ सत्तानुकूल पंछी,हमारे प्रदेश में भी हैं, जो सत्ता की डाल पर ही विराजते हैं,ये वो दैत्य हैं,जिनके प्राण सत्ता रूपी तोते में ही बसते हैं और इनकी खातिर पार्टियों के नेता आपस में तू-तू-मैं-मैं से बढ़ कर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं ! काश कि ऐसी प्रतिस्पर्द्धा जनहित के लिए भी होती !


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