गढ़वाल की कमला भंडारी से कुछ सीखिए..अपने दम पर प्राकृतिक जल स्रोत को दिया पुनर्जीवन
गांव में पानी के स्रोत सूख रहे थे, खेती के लिए पानी नहीं मिल रहा था। कमला देवी पांच सालों तक जल संरक्षण अभियान में जुटी रहीं, नतीजतन प्राकृतिक स्रोत एक बार फिर पानी से भर गए।
Apr 22 2021 10:35AM, Writer:कोमल नेगी
भीषण गर्मी के दौरान पानी की कमी से जूझने वाले उत्तराखंड में जल संरक्षण के लिए अनूठे प्रयोग किए जा रहे हैं। पहाड़ की महिलाएं जल स्रोतों को बचाने और उनके संरक्षण में अहम योगदान दे रही हैं। चमोली की रहने वाली कमला भंडारी इनमें से एक हैं। उन्होंने अपने परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल कर सूख रहे पेयजल स्रोत को पुनर्जीवित करने में योगदान दिया। यही नहीं वो गांव में वर्षा जल का संग्रहण कर इस पानी का इस्तेमाल बागवानी और सब्जी उत्पादन में कर रही हैं। कर्णप्रयाग के अंतर्गत आने वाली ग्राम सभा नैणी में एक गांव है झुरकंडे। कमला देवी इसी गांव में रहती हैं। 50 वर्षीय कमला देवी संयो तोक में धान की खेती करती थीं, लेकिन साल दर साल खेतों तक पानी पहुंचाने वाले प्राकृतिक स्रोत का पानी सूखता चला गया। खेती प्रभावित होने लगी। तब कमला ने अपने परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल कर खेतों के पास स्थित प्राकृतिक जल स्रोत के पास पौधारोपण किया।
उन्होंने पहाड़ी में गड्ढे बनाकर वहां वर्षा जल का संरक्षण शुरू किया। कमला देवी पांच सालों तक जल संरक्षण अभियान में जुटी रहीं, नतीजतन प्राकृतिक स्रोत एक बार फिर पानी से भर गए। कमला भंडारी ने बारिश का जो पानी संरक्षित किया, उससे खेतों की सिंचाई होने लगी। पानी की कमी दूर हुई तो कमला भंडारी परंपरागत खेती छोड़ माल्टा, नींबू, सेब और आम की खेती करने लगीं। सब्जी का उत्पादन भी शुरू कर दिया। कमला देवी से प्रेरणा लेकर आज गांव की दूसरी महिलाएं भी स्वयं सहायता समूह के जरिए सब्जी उत्पादन से जुड़ रही हैं। उत्पादित सब्जियों को राजेश्वरी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बाजार में बेचा जाता है, जिससे महिलाओं को अच्छी आय हो रही है। इस तरह कमला भंडारी के प्रयास से जल स्रोतों का संरक्षण हुआ। साथ ही उनकी कोशिशों ने दूसरों के लिए आर्थिक सफलता के रास्ते भी खोले। अब पूरे क्षेत्र में कमला भंडारी की मिसाल दी जाती है।
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