उत्तराखंड में ‘खास’ अफसरों को बचाने की कोशिश? रावत और चंदोला को ही क्यों बनाया निशाना?
सवाल रावत और अनिल कुमार चंदोला के निलंबन को लेकर हो रहे है, क्या इनके खिलाफ कार्रवाई बिना विस्तृत तकनीकी जांच के कराए गई है?
Jun 24 2021 2:21PM, Writer:Komal Negi
सवाल बहुत बड़ा है और गहरा भी। क्या उत्तराखंड में कुछ अफसरों को बचाने की कोशिश हो रही है? क्या उत्तराखंड में अफसरों की कोई विशेष लॉबी बनी हुई है? अगर नहीं तो फिर देहरादून में ऐसा क्यों हुआ? आपको याद होगा कि कुछ वक्त पहले ही देहरादून में बड़ासी पुल का एप्रोच मार्ग ध्वस्त हो गया था। इस मामले में प्रमुख सचिव रमेश कुमार सुधांशु ने अधिशासी अभियंता जीत सिंह रावत, सहायक अभियंता अनिल कुमार चंदोला और तत्कालीन अधिशासी अभियंता शैलेन्द्र मिश्र को निलंबित कर दिया। सबसे पहली बात...क्या इन 3 लोगों को निलंबित करने से मामले की इतिश्री हो गई? मुख्यमंत्री के सामने वाहवाही लूटने के लिए विभाग ने इनको तत्काल प्रभाव से निलंबित तो कर दिया लेकिन सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठ रहे हैं जीत सिंह रावत और अनिल कुमार चंदोला के निलंबन को लेकर। क्या इनके खिलाफ कार्रवाई बिना किसी विस्तृत तकनीकी जांच कराए की गई है? जीत सिंह रावत की गलती क्या थी? जिस वक्त ये एप्रोच मार्ग बन रहा था, उस वक्त जीत सिंह रावत पीएमजीएसवाई लोक निर्माण विभाग कीर्ति नगर में कार्यरत थे। ऐसे में जीत सिंह रावत का एप्रोच मार्ग से कुछ लेना-देना ही नहीं तो उनका निलंबन क्यों हुआ? आगे भी पढ़िए
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एक रिपोर्ट कहती है कि ‘’बड़ासी पुल के एप्रोच मार्ग का ठेका 15 सितम्बर 2016 से लेकर 14 दिसंबर 2017 तक दिया गया था। काम पूरा हुआ सितम्बर 2018 में। उस वक्त जीत सिंह रावत PMGSY लोक निर्माण बिभाग कीर्तिनगर में थे। इसके बाद उनका ट्रांसफर 15 अक्टूबर 2018 को रुड़की कर दिया गया। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, जीत सिंह रावत ने 17 अक्तूबर 2018 को ज्वाइन किया। जबकि पुल का निर्माण 10 अक्तूबर 2018 को हो चुका था। उनके ज्वाइन करने से पहले 21 करोड़ लागत के पुल निर्माण का अधिकांश भुगतान ठेका कंपनी दून एसोसिएट्स को हो चुका था।’’ इसके बाद भी शासन ने कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। पड़ताल आगे कहती है कि ‘’कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक कार्य पूर्ण होने के बाद भी मैसर्स दून एसोसिएट्स को अगले डेढ़ साल तक एप्रोच मार्ग की देखभाल करनी थी। मेंटेनेंस का समय 9 अप्रैल 2020 जो खत्म हो चुका है। एप्रोच मार्ग जून 2021 में टूटा और इस दौरान शैलेन्द्र मिश्र वहां पर तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता थे।’’ उधर अनिल चंदोला ने उपलब्ध ड्राइंग व डिजाइन के अनुसार ही कार्य कराया है। सवाल ये है कि जिस वक्त प्रोजेक्ट की स्ट्रक्चरल ड्राइंग बनाई गई तो उस समय खामियों का ध्यान क्योँ नहीं दिया गया? स्ट्रक्चरल ड्राइंग को जिस अभियंता ने पास किया उसे क्योँ नहीं पकड़ा गया ? सवाल रावत और अनिल कुमार चंदोला के निलंबन को लेकर हो रहे है, क्या इनके खिलाफ कार्रवाई बिना विस्तृत तकनीकी जांच के कराए गई है? वैसे शासन के अंदरखाने ही कई बार ऐसी खबरें भी उड़ती रही हैं कि बाहर के अफसरों की अलग लॉबी है, उन्हें बचाने की अलग ही कोशिश होती है।