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उत्तराखंड: इन्हें जानते हैं आप? गढ़वाली-कुंमाऊनी बोली के लिए कर रहे हैं भगीरथ प्रयास

बदलते वक्त के साथ युवा पीढ़ी अपनी बोली-भाषा से लगाव खोने लगी है, लेकिन कुछ लोग हैं जो आज भी इन्हें संजीवनी देने के प्रयास में जुटे हैं। गिरीश पंत ऐसी ही शख्सियत हैं।
Sep 26 2021 12:56PM, Writer:Komal Negi

उत्तराखंड की संस्कृति, लोक-विधाएं और बोली-भाषा हमारी धरोहर हैं। ये हमारी परंपराएं और बोली-भाषा ही है, जो हमें हमारे अस्तित्व का अहसास कराती हैं। हमें ये बताती हैं कि हम देवभूमि उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करते हैं। बदलते वक्त के साथ युवा पीढ़ी अपनी बोली-भाषा से लगाव खोने लगी है, लेकिन कुछ लोग हैं जो आज भी इन्हें संजीवनी देने के प्रयास में जुटे हैं। युवा पीढ़ी को गढ़वाली-कुमाऊंनी से जोड़ने की अलख जगाए हुए हैं। पौड़ी गढ़वाल के गिरीश पंत ऐसी ही शख्सियत हैं। गिरीश पंत इंजीनियर हैं, पिछले 40 साल से फिनलैंड में रह रहे हैं, लेकिन विदेश में रहते हुए भी वो न तो अपनी संस्कृति भूले और न ही अपनी भाषा। वो आज भी सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को गढ़वाली-कुमाऊंनी और अपनी लोकभाषाओं से जुड़े रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। गिरीश कहते हैं कि अन्य भाषाओं का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन अपनों के बीच रहते हुए अपनी भाषा-बोली को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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अपनी भाषा में बात करने में शर्म नहीं आनी चाहिए। अपनी बोली में बात करने का अलग ही आनंद होता है। जर्मनी, स्वीडन और नॉर्वे जैसे तमाम देशों में वहां की स्थानीय भाषा को प्राथमिकता दी जाती है। वहां जॉब तभी मिलती है, जब लोग अपनी भाषा बोलते हों, लेकिन उत्तराखंड के लोग अपनी बोली-भाषा के प्रति जागरूक नहीं हैं। गिरीश पंत मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल की कंडारस्यूं पट्टी के भरगढ़ी-बज्याड़ गांव के रहने वाले हैं। वो पिछले कई सालों से गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा के संरक्षण कार्य से जुड़े हुए हैं। गिरीश पंत ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि वो अपने बच्चों को गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा बोलने के लिए प्रेरित करें। लोकभाषा साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय साहित्यकारों ने भी उनके इस प्रयास की तारीफ की। उन्होंने कहा कि यूरोप से गढ़वाली-कुमाऊंनी को बढ़ावा देने का आह्वान नई पीढ़ी के लिए शुभ संकेत है। आनेवाले दिनों में यकीनन इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। लोकभाषा को बढ़ावा मिलेगा। (वीडियो साभार हैलो उत्तराखंड)

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