कभी रक्त से भरा जाता था कुंड
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कहा जाता है कि 2014 से पहले इस कुंड को पशुओं के रक्त से भरा जाता था, मगर समय के साथ मान्यताओं में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। अब इस कुंड को रक्त की जगह नारियल के पानी से भरा जाता है। सभी भक्तों की आस्था है कि जो भी मां के दर्शन करने को आता है, वह सभी दुख, कष्ट से मुक्त हो जाता है, माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है।
2014 से बदली परंपरा
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हालांकि 2014 से ही यहां पर पशु बलि समाप्त कर दी गई, मगर आज भी कई गांव ऐसे हैं, जो माता को पशु बलि अपने-अपने गांवों और अपने अपने घरों में ही देते हैं। माँ कलिंका के मंदिर में कोई भी पशु बलि न दे। जिसके लिए प्रशासन ने यहां पर भारी सुरक्षा बल तैनात किया हुआ है।