बूंद-बूंद को तरसेगा देहरादून! रिसर्च में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े..संभल जाइए
उत्तराखंड जल संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 500 से ज्यादा जल स्रोत सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं, dehradun ground water level का हाल बेहद बुरा है
May 20 2022 2:33PM, Writer:कोमल नेगी
गर्मी बढ़ते ही उत्तराखंड में पेयजल संकट गहराने लगता है। ये हाल तब है, जबकि उत्तराखंड के पास तमाम वाटर रिसोर्स हैं। आने वाले दिनों में स्थिति और खराब होगी, क्योंकि यहां भूजल स्तर लगातार नीचे खिसक रहा है। पिछले एक दशक में देहरादून शहर में ग्राउंड वॉटर तकरीबन 5 मीटर नीचे चला गया है।
latest report of ground water level in uttarakhand
उत्तराखंड जल संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 500 से ज्यादा जल स्रोत सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं, जो चिंता का विषय है। हालांकि प्रदेश सरकार ने जल नीति घोषित कर वर्षा जल संग्रहण के साथ पारंपरिक स्रोतों को बचाने का लक्ष्य तय किया है। भूमिगत जल के लिहाज से उत्तराखंड के भौगोलिक परिक्षेत्र को तीन भागों दून वैली, भाबर और तराई इलाकों में बांटा गया है। दून वैली परिक्षेत्र में दून घाटी और हरिद्वार का कुछ हिस्सा आता है। भाबर क्षेत्र में ऊधमसिंहनगर और नैनीताल के मैदानी इलाके शामिल हैं। तराई क्षेत्र में ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार के निचले इलाके शामिल हैं। अब भूमिगत जल की स्थिति भी जान लेते हैं। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के रीजनल डायरेक्टर प्रशांत कुमार राय कहते हैं कि दून वैली में ग्राउंड वाटर अधिकतम 91.5 मीटर पर पाया जाता है। भाबर क्षेत्र में ग्राउंड वाटर अधिकतम 160 मीटर पर और तराई के इलाकों में भूमिगत जल मात्र 5 मीटर से लेकर अधिकतम 10 से 12 मीटर पर मिल जाता है। तराई क्षेत्र में भूमिगत जल की स्थिति भी काफी हद तक अच्छी है। आगे पढ़िए देहरादून का हाल
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पिछले एक दशक में देहरादून ने बहुत तेज गति से प्रगति की है। जिसका भूमिगत जल यानी कि ग्राउंड वाटर पर गहरा असर पड़ा है। देहरादून शहर में ग्राउंड वाटर तकरीबन 5 मीटर नीचे गया है। हरिद्वार, बहादराबाद और भगवानपुर में भी यही स्थिति है। उत्तराखंड के लिए अच्छी बात ये है कि साल 2020 में यहां हुए ग्राउंड वाटर के सर्वे में 18 ब्लॉक में से 14 ब्लॉक सेफ जोन में आते हैं। लेकिन 4 ब्लॉक बहादराबाद, भगवानपुर, हल्द्वानी और काशीपुर ऐसे विकासखंड है, जो कि तीसरी कैटेगरी यानी कि सेमी क्रिटिकल जोन में आते हैं। मतलब साफ है कि इन क्षेत्रों में भूमिगत जल का 70 फीसदी दोहन किया जा रहा है। इसी रफ्तार से ग्राउंड वाटर का दोहन होता रहा तो आने वाले समय में इन जगहों पर भूमिगत जल की बेहद बुरी स्थिति होने वाली है। ऐसे में हमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग समेत जल संरक्षण के दूसरे उपायों को लेकर गंभीरता से सोचना होगा।