image: body protectors will be given to forest workers in uttarakhand

अब उत्तराखंड में वनकर्मियों के लिए आ गए बॉडी प्रोटेक्टर, जानिए इस आधुनिक ड्रेस की खूबियां

हल्द्वानी में वन्यजीव अक्सर आबादी में आ जाते हैं। ऐसे में जानवर को रेस्क्यू करने और लोगों की जान बचाने के साथ खुद को सुरक्षित रखना वनकर्मियों के लिए बड़ी चुनौती होता है।
Jul 26 2022 10:14AM, Writer:कोमल नेगी

उत्तराखंड में बाघ-तेंदुओं का आतंक बढ़ता जा रहा है। न तो आम लोग सुरक्षित हैं और न ही वनकर्मी।

Body protectors for forest workers in uttarakhand

जंगलों में रेस्क्यू, सर्च ऑपरेशन और वन्यजीवों की गणना के दौरान वनकर्मियों की जान दांव पर लगी रहती है। कई बार रेस्क्यू टीम पर हमले भी हुए हैं। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए अब वनकर्मियों को कवच यानी बॉडी प्रोटेक्टर दिए जाएंगे। इमरजेंसी की स्थिति में वनकर्मी बॉडी प्रोटेक्टर का इस्तेमाल कर सकेंगे। वेस्टर्न सर्किल की तराई पूर्वी डिविजन ने इन्हें पहले ही मंगा लिया था। अब चार अन्य डिवीजनों में भी वनकर्मी बॉडी प्रोटेक्टर पहने नजर आएंगे। बता दें कि दो महीने पहले रामपुर रोड स्थित एक गांव में गुलदार दिखा था। जिसे रेस्क्यू करने में 5 घंटे लगे। इस दौरान तीन वनकर्मी भी घायल हो गए थे। इसी तरह जून महीने में कॉर्बेट के सर्पदुली में बाघ ने एक दैनिक श्रमिक और बीट वॉचर पर हमला किया था, जिसमें श्रमिक की जान चली गई थी।

वनकर्मी जब बॉडी प्रोटेक्टर पहनेंगे तो इस तरह की जनहानि को रोका जा सकेगा। उत्तराखंड में वेस्टर्न सर्किल के वनकर्मियों को बॉडी प्रोटेक्टर दिए जाएंगे। वेस्टर्न सर्किल के तहत हल्द्वानी वन प्रभाग, तराई केंद्रीय, तराई पश्चिमी, रामनगर और तराई पूर्वी डिवीजन आती है। इन पांच प्रभागों में 125 बाघ और 127 हाथी पिछली गणना में नजर आए थे, लेकिन स्पष्ट गणना अब तक नहीं हो सकी है। हल्द्वानी में वन्यजीव अक्सर आबादी में आ जाते हैं। ऐसे में जानवर को रेस्क्यू करने और लोगों की जान बचाने के साथ खुद को सुरक्षित रखना वनकर्मियों के लिए बड़ी चुनौती होता है। कई बार रेस्क्यू टीम के सदस्य खुद हमले में घायल हो जाते हैं। अब वन विभाग बॉडी प्रोटेक्टर के जरिए वनकर्मियों को सुरक्षित रखेगा। वन संरक्षक दीप चंद्र आर्य ने सभी डीएफओ को इस बाबत निर्देश दिए हैं। उन्होंने बताया कि पूर्वी डिवीजन के बाद वेस्टर्न डिवीजन के लिए भी बॉडी प्रोटेक्टर मंगा लिए गए हैं, ताकि आपात स्थिति में वनकर्मियों को खतरे का सामना न करना पड़े।


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