उत्तराखंड में क्यों और कैसे मनाया जाता है हरेला, आप भी जानिए इस खूबसूरत पर्व की खास बातें
Uttarakhand Harela festival राज्य की लोक पंरपराओं और लोक पर्व भी प्रकृति को समर्पित हैं। यहां मनाए जाने वाले लोक पर्वों में प्रकृति के प्रति अनूठा प्रेम दिखता है।
Jul 17 2023 3:09PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
उत्तराखंड के पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं। दूर दूर तक फैले पहाड़, कलकलाती नदियां, घने जंगलों के बीच बसे इस राज्य की लोक पंरपराओं और लोक पर्व भी प्रकृति को समर्पित हैं।
Why we celebrate Harela
यहां मनाए जाने वाले लोक पर्वों में प्रकृति के प्रति अनूठा प्रेम दिखता है। यहां के पर्व लोगों को प्राकृतिक से थोड़ा और अधिक जोड़ कर रख देते हैं। प्रकृति से प्रेम करना सिखाता एक ऐसा ही त्योहार है हरेला।उत्तराखंड के लोक पर्वों में से एक हरेला को गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। वैसे तो हरेला सालभर में कुल तीन बार मनाया जाता है, लेकिन इनमें सबसे विशेष महत्व रखने वाला हरेला पर्व सावन माह के पहले दिन मनाया जाता है। हरेला क्यों मनाया जाता है, इसका भी अपना एक विस्तृत इतिहास है। लोक परंपराओं के अनुसार, पहले के समय में पहाड़ के लोग खेती पर ही निर्भर रहते थे। इसलिए सावन का महीना आने से पहले किसान ईष्टदेवों व प्रकृति मां से बेहतर फसल की कामना व पहाड़ों की रक्षा करने का आशीर्वाद मांगते थे। हरेला सावन के पहले संक्राद के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं में इसे हरियाली व गढ़वाल क्षेत्र में मोल संक्राद के रूप में जाना जाता है। हरेला की परंपरा बहुत पुरानी है। पहाड़ों में 17 जुलाई यानी आज से सावन शुरू होगा। सावन महीने में हरेला पर्व का विशेष महत्व है।
How we celebrate Harela
हरेला पर्व से 9 दिन पहले इसे बोया जाता है। घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकालकर पहले सुखाई जाती है और फिर उसे छानकर टोकरी में जमा किया जाता है। इसके बाद 5 या 7 अनाज जैसे- मक्का, धान, तिल, भट्ट, जौ, इत्यादि डालकर इसे सींचा जाता है। इसे मंदिर के पास रखकर पूरे 9 दिन तक इसकी देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता है। हरेला पर बुजुर्ग अपने से छोटों को जी रया जागी रया का आशीष वचन देते हैं। इनको कुमाउनी आशीर्वचन भी कहा जाता है।इस दिन किसी अंकुरित अनाज पर या सबूत अनाज की प्राण प्रतिष्ठा करके उसे अपने कुल देवताओं को चढ़ा कर, रिश्ते में अपने से छोटे लोगों को आशीष के रुप चढ़ाते हैं, उस समय ये कुमाउनी आशीर्वचन गाये जाते है या आशीष वचन बोले जाते हैं। यही हमारी संस्कृति है, यही हमारी परंपरा है, और लोगों के दिलों में बसा प्रेम है। इसलिए तो लोग कहते हैं " जब तक हिमालय में बर्फ रहेगी,और जब तक गंगा जी में पानी रहेगा, अन्तन वर्षो तक तुमसे मुलाकात होती रहे ,ऐसी हमारी कामना है। "