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उत्तराखंड में अब ‘जंगल’राज पर खुलासा होगा, BJP नेता का दमदार लेख..पढ़िए

जब बाड़ ही खेत खाने लगेगी तो सरकार के दावे जमीन पर कैसे उतरेंगे। उम्मीद है मुख्यमंत्री की नजर अब जंगल से जुड़े प्रकरणों पर पड़ेगी तो एन एच से बड़े मामले कब्र से बाहर निकलेंगे।
Sep 13 2018 6:21PM, Writer:कपिल

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की एनएच घोटाले पर अफसरों पर की गई कार्रवाई से अब उन लोगों में आस जगी है, जो लंबे समय से अफसरों की निरंकुशता से चल रही मनमानी से परेशान थे। साथ ही मुख्यमंत्री के इस कदम से ईमानदार अफसरों का मनोबल ऊंचा हुआ है। आईएएस अफसरों पर कार्रवाई करने के बाद निसंदेह प्रदेश की नौकरशाही में कुंडली मारे बैठे भ्रष्ट नौकरशाहों में दहशत है। आजकल वन विभाग में बाघों की मौत की जांच का प्रकरण चर्चाओं में है। हाल ही में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी अफसरों पर सख्त टिप्पणी करके उत्तराखंड की नौकरशाही को लानत भेजी है। बाघों की मौत पर असंवेदनशील होने पर कोर्ट ने अफसरों पर लताड़ लगाई थी। अगर इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच हो तो कई बड़े और उजले नाम सलाखों के पीछे होंगे। कार्वेट और राजाजी पार्क से जुड़े मामलों में मनमानी, पैसे की लूट, जंगलराज और आवाज उठाने वालों को इस सिंडिकेट द्वारा उल्टा फंसाने के मामले चर्चाओं में हैं।

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वन विभाग से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए एक चर्चित अधिकारी और वन विभाग के मुखिया का आमने-सामने का टकराव सुर्खियों में रहा। पिछली कांग्रेस सरकार में अपने आकाओं के दम पर अपने विभागीय मुखिया को तवज्जो ना देने वाला ये निरंकुश अधिकारी रिटायर होकर भी अपने सिंडिकेट के दम पर विभाग में दखल रखता रहा है। मुख्यमंत्री रावत के संज्ञान में देर सबेर ये मसला आएगा। जानबूझकर बाघों और जंगलों के हितों की अनदेखी करके आखिर किसे बचाने के लिए वन विभाग के अधिकारी लंबे समय से शीत युद्ध लड़ रहे हैं ? बहरहाल बाघों की मौत का मामला अब हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई को दे दिया गया है। जल्द ही इस मामले में भी खुलासा होगा। बजट को ठिकाने लगाने में माहिर अफसर अपने कारनामों को सिंडिकेट के दम पर चलाते आये हैं। वहीं ईमानदार अफसर या तो उपेक्षित हैं या समर्पण की मुद्रा में हैं।

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लंबे समय तक गांधी परिवार का नजदीकी बताने वाला एक शख्स जो कि दशकों से वन विभाग में हस्तक्षेप करता रहा। जंगल के सख्त कानून जिसकी जेब में होते थे, यही नही गांधी परिवार के नाम पर वो प्रदेश के मुख्य सचिव को भी धमकाकर रखता था। उसके संरक्षण में भी कई अफसरों ने जंगलराज किया। जंगलराज की इंतेहा इस हद तक है की ऐसे ही मामलों को लेकर शासन में अटैच चल रहा वन विभाग का एक एसीएफ स्तर का अफसर शासन में बैठे एक बड़े आका की कृपा पर निर्भीक होकर घूम रहा है, न ही अपने पूर्ववर्ती पद पर अपने रसूख के चलते किसी अन्य को तैनात होने दे रहा है। बाघ ही नहीं, हाथी गुलदार और अन्य जानवरों की मौत के मामले भी फाइलों में कैद हैं। कुछ दिनों पूर्व विभाग के बंधे हुए पालतू हाथी को जंगली हाथी ने मार डाला और पूरा प्रकरण दबा दिया गया।

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शासन तक बड़ी पहुंच और संरक्षण के कारण बहुत सारी फाइलें न्याय के इंतजार में अफसरों की कैद काट रही हैं। वन विभाग के कुछ अफसरों का पिछली सरकार में कांग्रेसी बनकर नौकरी करना चर्चाओं में रहा है। पिछली सरकार में अपने ही विधायकों की खरीद-फरोख्त के समय कानून तोड़कर कॉर्बेट के भीतर निरंतर हेलीकॉप्टर उतारे गये, जबकि संरक्षित क्षेत्र में ऐसा करना बड़ा अपराध है।जब बाड़ ही खेत खाने लगेगी तो सरकार के दावे जमीन पर कैसे उतरेंगे। उम्मीद है मुख्यमंत्री की नजर अब जंगल से जुड़े प्रकरणों पर पड़ेगी तो एन एच से बड़े मामले कब्र से बाहर निकलेंगे।
(बीजपी के पूर्व प्रवक्ता सतीश लखेड़ा की कलम से साभार)


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